पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२५
शिष्टमण्डल: लॉर्ड एलगिनकी सेवा में

भारतीयोंके लिए यह सम्भव नहीं है कि वे ऐसे अध्यादेशसे समझौता कर सकें। मैं नहीं समझता कि ऐसा अध्यादेश महामहिमके राज्यके किसी भी भागमें स्वतंत्र ब्रिटिश प्रजाजनोंपर लागू है।

इसके अतिरिक्त आज ट्रान्सवाल जैसा सोचेगा, दूसरे उपनिवेश भी कल वैसा ही सोचेंगे। जब लॉर्ड मिलनरने ब्रिटिश भारतीयोंपर बाजार सूचना[१] एकाएक लागू की तो सारा दक्षिण आफ्रिका 'बाजार' की चर्चासे गूंज उठा। 'बाजार' शब्दका प्रयोग गलत अर्थमें किया गया है । वास्तव में इसका प्रयोग बस्तियोंके लिए किया गया है, जहाँ व्यापार सर्वथा असम्भव है। परन्तु 'बाजार' सूचनाके बाद नेटालके [२] तत्कालीन महापौरने गम्भीरतापूर्वक एक प्रस्ताव रखा था कि भारतीय बाजारोंमें[३] खदेड़ दिये जायें। इसका रंचमात्र भी कारण नहीं है कि इस अध्यादेशका भी, जब यह कानून बन जायेगा, दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे भागोंमें अनुसरण न हो। आज नेटालमें स्थिति यह है कि गिरमिटिया भारतीयोंके लिए भी इस तरह पास लेकर चलना आवश्यक नहीं है जैसा कि इस एशियाई कानून-संशोधन अध्यादेशमें विहित है; और न वहाँ बिना पास लेकर चलनेवालोंके लिए ऐसी कोई सजाएँ हैं जिनकी प्रस्तावित अध्यादेशमें व्याख्या की गई है। हम अपने विनम्र प्रतिवेदनमें पहले यह दिखला चुके हैं कि इस अध्यादेश के अन्तर्गत कोई राहत नहीं दी गई है; क्योंकि ३ पौंड शुल्ककी छूट, जिसका श्री डंकनने उल्लेख किया है, सर्वथा भ्रामक है; क्योंकि ट्रान्सवालके हम समस्त ब्रिटिश भारतीय निवासी, जिन्हें १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत ३ पौंड देना पड़ता है और जो लॉर्ड सेल्बोर्नके वादेके अनुसार ट्रान्सवालमें पुनः प्रवेश कर सकते हैं, ३ पौंड अदा कर चुके हैं।

अस्थायी अनुमतिपत्र जारी करनेका अधिकार भी फाजिल है, इस अर्थमें कि सरकार इस अधिकारका प्रयोग पहले ही कर चुकी है और आज ट्रान्सवालमें अनेक भारतीय हैं जिनके पास अस्थायी अनुमतिपत्र हैं। वे अपने अनुमतिपत्रोंकी अवधि बीतनेपर उपनिवेशसे निकाले जा सकते हैं।

मद्य अध्यादेशके[४] अन्तर्गत ब्रिटिश भारतीयोंको जो राहत दी गई है, उसमें उन्हें अपना अकारण अपमान ही लगता है। स्थानीय सरकारने इस बातको समझा था और तुरन्त ही भारतीयोंको विश्वास दिलाया था कि यह कदापि ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू करनेके लिए नहीं है, किन्हीं और लोगोंके लिए है। अन्य लोगोंसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। और हमने यह दिखानेका सदैव प्रयत्न किया है कि ब्रिटिश भारतीयोंके साथ ब्रिटिश प्रजाजनों जैसा व्यवहार होना चाहिए और उन्हें उन सर्वसाधारण एशियाइयोंमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए जिनपर कुछ नियंत्रणोंकी आवश्यकता हो सकती है, किन्तु वे नियंत्रण ब्रिटिश भारतीयोंपर ब्रिटिश प्रजाजनोंके रूपमें लागू नहीं किये जाने चाहिए।

एक बात और बाकी है, वह स्वर्गीय अबूबकरकी[५] जमीनके सम्बन्ध है। वास्तव में वह जमीन उनके उत्तराधिकारियोंको मिलनी चाहिए; परन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा

  1. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ५१-५४।
  2. डर्बनके महापौर
  3. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ २५७-५८।
  4. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४१२ ।
  5. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २४०-४१।