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शिष्टमण्डल: लॉर्ड एलगिनकी सेवा में

जो भारतीय उपनिवेशमें गलत ढंगसे आनेकी चेष्टा करेंगे, उनको बाहर रखने के लिए यह काफी नहीं है?

इस विधेयकके पास करने का कारण यह बताया गया है कि ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंकी अनधिकृत बाढ़ आ गई है और वह भी जबरदस्त पैमानेपर, और कि भारतीय समाज इस ढंगसे भारतीयोंको उपनिवेशमें प्रवेश दिलानेकी चेष्टा कर रहा है। अन्तिम आरोपका अनेक बार भारतीय समाजने खण्डन किया है और जिन लोगोंने यह आरोप लगाया है उनको चुनौती दी है कि वे अपने इस कथनको सिद्ध करें। प्रथम वक्तव्यका भी खण्डन किया गया है।

मुझे एक और बातका उल्लेख कर देना चाहिए। वह है, चौथा प्रस्ताव जो कि ब्रिटिश भारतीयोंकी सार्वजनिक सभामें[१] पास किया गया था। यह प्रस्ताव बड़ी गम्भीरतापूर्वक, सानुरोध और अत्यन्त विनम्रताके साथ पास किया गया था और उस सम्पूर्ण सार्वजनिक सभाने इस प्रस्तावके द्वारा यह निश्चय किया था कि यदि यह अध्यादेश कभी लागू कर दिया गया और हमें राहत नहीं दी गई तो ब्रिटिश भारतीय इसके अन्तर्गत होनेवाले अपमानके सामने झुकनेके बजाय जेल जायेंगे। इस अध्यादेशके कारण भी उत्तेजना फैल गई थी, इससे उसकी गहराईका पता चलता है। अबतक हमने ट्रान्सवालमें और दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे भागों में बहुत कुछ सहन किया है, क्योंकि वह तकलीफ बर्दाश्त की जा सकती थी। हमें ६ हजार मील चलकर साम्राज्यीय सरकारके समक्ष स्थिति रखने की आवश्यकता नहीं थी; परन्तु अध्यादेशके कारण सहनशीलताकी हद हो गई है और हमें लगा कि हम सम्पूर्ण विनम्रताके साथ अपनी पूरी शक्ति लगा दें; यहाँतक कि लॉर्ड महोदयके समक्ष एक शिष्टमण्डल भेजें।

इसलिए मेरी विनम्र रायमें भारतीय समाजके हितमें कमसे-कम एक आयोगकी नियुक्ति की जाये, जैसा कि महानुभावके समक्ष प्रस्तुत किये गये विनम्र प्रतिवेदनमें सुझाया गया है। यह एक चिरकालसे सम्मानित ब्रिटिश प्रथा है कि जब कभी किसी महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तका प्रश्न उठता होता है, तब कोई कदम उठाने से पहले एक आयोग नियुक्त किया जाता है। ब्रिटेनमें अन्य देशोंके लोगोंके प्रवेशका प्रश्न भी ऐसा ही है। ब्रिटेनमें प्रवेश करनेवाले अन्य देशीयोंपर जो आरोप लगाये गये थे, लगभग उन्हींसे मिलते-जुलते आरोप भारतीय समाजपर लगाये गये हैं। फिर, वर्तमान कानूनके पर्याप्त होने-न-होने और आगे कानून बनानेकी आवश्यकताका भी प्रश्न था। ये तीनों मुद्दे कोई कदम उठाने से पहले एक आयोगको विचारके लिए सौंपे गये थे। इसलिए मेरा खयाल है कि कोई सख्त कानून बनाने के पहले एक आयोग नियुक्त हो और इस सम्पूर्ण प्रश्नकी छानबीन की जाये।

इसलिए मैं यह आशा करनेकी धृष्टता करता हूँ कि लॉर्ड महोदय ब्रिटिश भारतीय समाजके लिए राहतकी यह छोटी-सी तजवीज मंजूर करेंगे।

श्री हा० व० अली: लॉर्ड महोदय, हम आपके बहुत कृतज्ञ हैं कि आप इस शिष्टमण्डल के निवेदनको धैर्यपूर्वक सुन रहे हैं। महानुभावके समक्ष श्री गांधीने इस मामलेको पूर्ण रूपसे उपस्थित कर दिया है। जो-कुछ कहा जा चुका है, उसके अतिरिक्त में कुछ और नहीं कहना चाहता। मैं वकील नहीं हूँ, एक साधारण व्यक्ति हूँ; परन्तु ट्रान्सवालके एक पुराने निवासीकी हैसियतसे मैं महानुभावकी सेवामें यह निवेदन करना चाहता हूँ कि वर्तमान अध्यादेशके

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३४।