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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण जो मुसीबतें हम लोगोंके ऊपर आ पड़ेंगी वे असह्य होंगी। क्या मैं महानुभावको यह विश्वास दिला सकता हूँ कि जब ट्रान्सवालकी विधान परिषदमें अध्यादेश पेश हुआ, तभी मेरे देशवासियोंको यह सोचकर, कि एक ब्रिटिश सरकारके अन्तर्गत ऐसे कानून कैसे पास किये जा सकते हैं, दुःख हुआ और बहुत गहरा दुःख। कुछ बरस पहले मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता था।

बोअर शासनके अधीन हमारी जो हालत थी उसके मुकाबले अब वह कहीं अधिक खराब हो गई है। उस समय हम ब्रिटिश सरकारसे संरक्षण पा जाते थे। क्या अब उसी सरकारके अधीन होनेपर हमें जुल्मका शिकार होना पड़ेगा?

जब कि यह अध्यादेश पेश है और सब वर्गोंके विदेशी ट्रान्सवालमें धाराप्रवाह चले आ रहे हैं तथा जब वे ब्रिटिश प्रजाजनोंको दिये जानेवाले अधिकारों और सुविधाओंका उपभोग कर रहे हैं, तब मेरे देशवासी, जो कि साम्राज्यकी रक्षामें सदा आगे रहते हैं, इन गम्भीर निर्योग्यताओं और अध्यादेशके कारण आनेवाली निर्योग्यताओं के कारण दुःख पा रहे हैं। आज भारतमें मेरे देशवासी सीमाकी रक्षापर तैनात हैं। वे साम्राज्यकी रक्षाके लिए अपने कन्धोंपर बन्दूक लिये खड़े हैं। यह बहुत दुःखकी बात है कि उनको ऐसा कष्ट भोगना पड़े और उनके विरुद्ध इस प्रकारका वर्ग-विधान बनाया जाये।

मैं न्यायके लिए अपील कर रहा हूँ और ब्रिटिश परम्पराओंके नामपर लॉर्ड महोदयसे प्रार्थना कर रहा हूँ कि महानुभाव कृपापूर्वक निषेधाधिकारका प्रयोग या कमसे-कम एक आयोगकी नियुक्ति करके उन निर्योग्यताओंको दूर करेंगे जो इस अध्यादेशके कारण हमारे ऊपर आ पड़ेंगी। हम राजभक्त ब्रिटिश प्रजाजन हैं और इस कारण हम सम्पूर्ण संरक्षणके पात्र हैं। हमने कभी राजनीतिक अधिकारोंकी माँग नहीं की और न हम आज यह माँग कर रहे हैं। हम यह भी मान लेते हैं कि ट्रान्सवालमें गोरोंका प्रभुत्व रहे, पर हम अनुभव करते हैं कि हम उन समस्त साधारण हकोंके अधिकारी हैं जो ब्रिटिश प्रजाको मिलने चाहिए।

सर हेनरी कॉटन: लॉर्ड महोदय, यदि मुझे अनुमति दें तो मैं कुछ शब्द कहना चाहता हूँ। मैं यहाँ अपने चारों ओर जिन बहुत-से प्रमुख लोगोंको देखता हूँ उनके समान केवल एक अवकाश प्राप्त भारतीय अफसरके रूपमें ही उपस्थित नहीं हुआ हूँ बल्कि में वर्तमान संसदका सदस्य हूँ और उस सभाका अध्यक्ष भी जो लोकसभा में ऊपरकी मंजिलके बृहत् सभा-भवनमें हुई थी, और जिसमें उदार दलके १०० से ज्यादा सदस्योंने भाग लिया था। मैं इस अवसर- पर यह भी कह दूँ कि उस सभा सदनके दोनों पक्ष निमन्त्रित नहीं किये गये थे, इसपर मुझे बहुत ज्यादा खेद है (तालियाँ)। यह एक ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण भूल थी जिसपर हम सभीको खेद है। फिर भी मैं इतना बता दूँ कि उस सभामें लोकसभाके १०० से ऊपर सदस्य शामिल हुए थे और इस विषयमें उनकी भावना वस्तुत: बहुत ही तीव्र थी। यहाँतक कि उन्होंने यह प्रस्ताव भी पास किया कि वे प्राथियोंके निवेदनके साथ सहानुभूति प्रकट करते हैं और उसका समर्थन करते हैं। लॉर्ड महोदय, मैं उस सभाके बाद लोकसभाके उन अनेक सदस्यों--सदनके दोनों पक्षोंके सज्जनोंके सम्पर्कमें आया हूँ जो वहाँ उपस्थित नहीं थे। विरोधी पक्षके कई सज्जनोंने मुझे यह सूचना भी दी है कि श्री गांधी और श्री अलीने ट्रान्सवालके अपने सह-प्रजाजनोंकी ओरसे जो रुख अख्तियार किया उससे उनकी पूरी सहानुभूति है।