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शिष्टमण्डल: लॉर्ड एलगिनकी सेवा में


मैं सर लेपेल ग्रिफिनके कहे हुए शब्दोंका पूरी तरह समर्थन करता हूँ और उसके साथ लॉर्ड महोदयको याद दिलाना चाहता हूँ कि राष्ट्रपति कूगरके प्रशासन में ब्रिटिश भारतीयों को जो कष्ट सहने पड़ते थे, इंग्लैंडमें लॉर्ड लैन्सडाउनने ही उनकी ओर विशेष रूप से ध्यान खींचा था। लॉर्ड लैन्सडाउनके प्रति हम सभीमें अत्यन्त आदर-सम्मानका भाव है; वे लॉर्ड सभामें विरोधी दलके नेता होनेपर भी प्रत्येक अवस्थामें, जैसा कि हम सभीको भली भाँति विदित है, एक अत्यन्त उदारचेता राजनयिक हैं, जिन्होंने कहा था कि दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयों के साथ किये जानेवाले दुर्व्यवहारसे उनके मनमें जितना रोष और को उत्पन्न होता है उतना अन्य किसी बातसे नहीं। युद्ध आरम्भ होनेके दो या तीन सप्ताह बाद शेफील्डमें दिये गये अपने भाषण में इससे भी आगे बढ़कर उन्होंने कहा था कि जब भारत में यह ज्ञात होगा कि दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंके साथ बहुत दुर्व्यवहार किया जाता है और उन्हें सताया जाता है तब उससे वहाँ निश्चय ही जो भावना पैदा होगी उसको लेकर वे अत्यन्त चिन्तित हैं। और उन्होंने इस बात की ओर इंगित किया था कि उनके दर्जे और उनकी स्थिति में सुधार करना ब्रिटिश सरकारका आवश्यक कर्तव्य है।

अब, लॉर्ड महोदय, यह एक वचन है जो लॉर्ड सभाके विरोधी दलके नेताने दिया था और मैं दक्षिण आफ्रिकाके इस मामलेको तय करने में उदारदलीय सरकारके प्रतिनिधिके रूप में आपसे अपील करता हूँ कि आपको अपना कर्तव्य कमसे-कम उस हद तक तो निश्चित ही मानना चाहिए जिस हद तक कुछ वर्ष पूर्व लॉर्ड लैन्सडाउन मानते थे ।

यह सच है कि भारतके लोग इस मामलेको बहुत ज्यादा महसूस करते हैं। यह भी सच है कि दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीय अपनी जिन तकलीफोंकी शिकायत करते हैं वे अब बोअर शासन कालसे अधिक हैं। और, इस अध्यादेशके, जिसकी शिकायत श्री गांधी और श्री अली यहाँ उचित ही कर रहे हैं, पास होनेसे तो इन तकलीफोंकी हद ही हो गई है। चूँकि मैं इस सम्बन्धमें लोकसभाके एक बहुत प्रभावशाली और बड़े भागका, और मेरा खयाल है कि भारतकी लगभग समूची सरकारी भावनाका, प्रतिनिधित्व करता हूँ, में विश्वास करता हूँ कि श्रीमान इस प्रार्थनापत्रपर अनुकूल विचार करेंगे।

सर मंचरजी भावनगरी: लॉर्ड महोदय, मेरा खयाल है, यह मामला ऐसी यता और स्पष्टतासे आपके सम्मुख प्रस्तुत किया गया है कि मुझे इसकी तफसीलमें जाने की जरा भी जरूरत नहीं है; और यदि मैं श्रीमानके सम्मुख कुछ मिनट बोलनेकी आवश्यकता अनुभव करता हूँ तो केवल इस कारण कि मैंने इस प्रश्नमें अपने साढ़े दस वर्षके पूरे संसदीय जीवनमें दिलचस्पी ली है। मैं श्रीमानका ध्यान कुछ मुद्दोंकी ओर दिलाना चाहता हूँ जो शायद श्रीमानकी जानकारीमें न हों।

दक्षिण अफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंके कष्टोंकी शिकायत के सिलसिलेमें मुझे आपके पूर्व-अधिकारियों, श्री चेम्बरलेन और श्री लिटिलटनसे इस विषयपर बहुत बार भेंटका अवसर मिला है। कार्रवाईके अन्तमें मैंने एक लम्बा छपा हुआ पत्र दिया था जिसमें समस्त तथ्योंका पूरा ब्यौरा था। और उसपर श्री लिटिलटनने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा था कि यह मामला इतनी अच्छी तरहसे पेश किया गया है और ये माँगें इतनी उचित हैं कि उन्हें कुछ राहत दिलानेकी आशा है। इसके विपरीत, मैं जानता था कि कौन-सी स्थानीय शक्तियाँ साम्राज्य सरकारके किसी भी मन्त्रिमण्डलको उदार नीतिका विरोध करेंगी। इसलिए मैंने उनके

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