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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

सहानुभूतिपूर्ण उत्तरके लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि इस समस्त मामलेपर विचारके लिए शायद एक आयोगको नियुक्ति आवश्यक होगी। सर जॉर्ज फेरारने भी, जो ट्रान्सवाल विधानमण्डलमें ब्रिटिश भारतीय-विरोधी हितका प्रतिनिधित्व करते थे, संयोगसे उसी समय यह सुझाव दिया था कि आयोगकी नियुक्तिसे इस मामलेपर प्रकाश पड़ेगा और सम्भव है, उस बहुत कठिन समस्याका कोई हल निकल आये। इसपर मैंने श्री लिटिलटनको फिर पत्र लिखा जिसमें मैंने सर जॉर्ज फेरारके प्रस्तावको मंजूर किया। तदनुसार व्यवस्था की जा रही थी और मेरा विश्वास है कि श्री लिटिलटन अन्तमें आयोग नियुक्त कर देते; किन्तु वह सरकार, जिसके वे उस समय सदस्य थे, हट गई। यह समस्त प्रश्न जिस कठिन स्थितिम है, उसका अनुभव करते हुए में जब अनुरोध करता हूँ कि एक आयोग नियुक्त कर दिया जाये और उसकी रिपोर्ट जबतक न निकले तबतक यह अध्यादेश स्थगित रखा जाये जिससे आप उस आयोगकी रिपोर्ट के सहारे इस समस्त प्रश्नकी छानबीन कर सकें।

महानुभाव, मुझे केवल एक बात और कहनी है। लॉर्ड महोदय पाँच वर्षके अपने स्मरणीय और प्रसिद्ध उपराजत्व-कालमें भारतीयोंके हितोंके अभिरक्षक तथा अभिभावक और उनके अधिकारोंके संरक्षक रहे हैं। हमारे नेता के रूपमें सर लेपेल ग्रिफिनने ठीक ही कहा है कि आज समस्त भारतीय प्रजाकी दृष्टि इस कमरेमें चल रही कार्यवाहीपर केन्द्रित है और जब मैं आशा व्यक्त करता हूँ कि उस सहानुभूतिके कारण, जो लॉर्ड महोदयने दिखलाई है और जो मेरे खयालमें आप अब भी दिखलाने को तैयार हैं तथा जिसका भरोसा आपने इस कमरेमें प्रवेश करनेपर भी दिलाया था, आप न्यायके अतिरिक्त अन्य किसी बातपर ध्यान नहीं देंगे और उस प्रार्थनाको मान लेंगे जिसे आपके सम्मुख रखने के लिए ये सज्जन इतनी दूरसे यहाँ आये हैं। मैं जब यह प्रकट करता हूँ तब मैं केवल भारतके ३० करोड़ लोगोंकी भावनाएँ ही व्यक्त कर रहा हूँ।

श्री रीज: लॉर्ड महोदय, मैं इस मामलेके गुण-दोषोंको चर्चा नहीं करूँगा। मेरा खयाल है कि उनकी सर लेपेल ग्रिफिन काफी चर्चा कर चुके हैं। और जिस विषयको मैंने स्वयं अक्सर संसदके सम्मुख रखा है, उसके बारेमें अपनी दिलचस्पीकी बात भी नहीं कहने जा रहा हूँ; किन्तु जब सर हेनरी कॉटनने कलको उस सभाकी बात कही है, मैं यह कहना चाहूँगा कि वह केवल एक दलकी सभा नहीं थी; बल्कि वह एक दलके एक भागकी सभा थी और एक ऐसे मामलेमें, जो इतने गम्भीर महत्त्वका है, ब्रिटिश भारतसे सम्बन्धित किसी विषयको एकदलीय विषय बनाने के प्रयत्नकी मैं अपनी पूरी शक्तिसे निन्दा करता हूँ। हम ट्रान्सवालमें अपने सहप्रजाजनोंके साथ दुर्भाग्यपूर्ण तरीकेसे बरताव करनेके गम्भीर मामलेको लेकर लॉर्ड महोदयक सम्मुख उपस्थित हुए हैं। मेरी समझमें इससे बढ़कर गम्भीर मामला और हो नहीं सकता।

श्री हैरॉल्ड कॉक्स: लॉर्ड महोदय, यहाँ उपस्थित सज्जनोंमें से बहुतोंकी अपेक्षा मेरी स्थिति कुछ भिन्न है; क्योंकि में न तो भारत सरकारका भूतपूर्व अधिकारी हूँ और न मैं जन्मतः भारतीय ही हूँ; किन्तु मैंने भारतमें एक देशी राजाके यहाँ दो वर्ष तक सेवा की है और अपने जीवनके उस कालको मैं अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक स्मरण करता हूँ। मेरे यहाँ होनेका एक विशेष कारण यह है। किन्तु आज मेरे यहाँ आनेका असली कारण यह है कि मेरे मनमें यह बात है कि मैं अंग्रेज हूँ और सोचता हूँ कि यह मामला मेरे देशके लिए अशोभनीय है। जब ट्रान्सवालसे हमारा युद्ध छिड़ा तब हमारे देशने ब्रिटिश भारतीयोंको जिस न्यायका वचन दिया था वह न्याय नहीं किया