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शिष्टमण्डल: लॉर्ड एलगिनकी सेवामें

गया; और मेरा विश्वास है कि वर्तमान सरकार, जिसके संचालनमें श्रीमानका भी हाथ है, यह दलील देकर बच नहीं सकती कि ट्रान्सवाल एक स्वशासित उपनिवेश है। वह स्वशासित उपनिवेश नहीं है। वह पूर्णतः आपके अधीन है और आज या किसी भी अन्य समय वहाँ जो-कुछ होता है, वह ट्रान्सवालके नामपर नहीं होता, बल्कि अंग्रेज प्रजाके नामपर होता है और मैं अंग्रेज प्रजाके नामपर ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनों के साथ अन्याय किया जानेका विरोध करता हूँ।

श्री नौरोजी: मैं श्रीमानका समय नहीं लेना चाहता और जिस योग्यतासे यह समस्त विषय आपके सम्मुख रखा गया है, उसके बाद मैं केवल उस अपीलमें शामिल होता हूँ जो ब्रिटिश झंडेके नीचे रहनेवाले मेरे साथी प्रजाजनोंकी ओरसे आपसे की गई है। किसी भी अन्य सिद्धान्त की अपेक्षा ब्रिटिश झंडेके नीचे ब्रिटिश प्रजाजनोंकी स्वतन्त्रताका सिद्धान्त अधिक महत्त्वपूर्ण है और मैं यह आशा करता हूँ कि ब्रिटिश सरकार, विशेषतः उदारदलीय सरकार, उस सिद्धान्तपर दृढ़ रहेगी।

श्री अमीर अली: लॉर्ड महोदय, मुझे केवल एक बात कहनेकी अनुमति दें। भारतके सम्बन्ध में मेरा हालका अनुभव कदाचित् सबसे अधिक ताजा है। मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंको जो आघात पहुँचाया गया है उसके विषयमें भारतकी भावना बहुत तीव्र है और यदि विषय टाल दिया गया तो यह एक गम्भीर भूल होगी। मैं एकमात्र यही बात लॉर्ड महोदयके सम्मुख रखना चाहता हूँ।

अर्ल ऑफ एलगिन: पहले तो मैं यह कहना चाहूँगा कि श्री कॉक्सने जिसे मेरी जिम्मेदारी माना है उसको मैं पूरी तरहसे स्वीकार करता हूँ। निःसन्देह उस सलाहके लिए, जो इस मामले में दी गई है, मैं जिम्मेदार हूँ, कोई दूसरा नहीं; और मैं अपनी इस जिम्मेदारीको टालना नहीं चाहता। दूसरे, मैं कहना चाहता हूँ कि श्री रीज, सर हेनरी कॉटन और अन्य लोगोंने जो कहा है उससे मैं सहमत हूँ; में इस प्रश्नको दलीय प्रश्न कतई नहीं मानता। सर हेनरी कॉटनने लॉर्ड लैन्सडाउनका हवाला दिया है; किन्तु मेरे सामने पिछली सरकारके उपनिवेश-मन्त्रीका एक खरीता है जिसमें से मैं एक अनुच्छेद पढ़ना चाहूँगा: "महामहिमकी सरकार यह विश्वास नहीं कर सकती कि ट्रान्सवालका अंग्रेज समाज उस प्रस्तावके वास्तविक रूपको समझता है जिसके सम्बन्धमें उसके कुछ सदस्य आपपर जोर दे रहे हैं। अंग्रेज होने के नाते वे भी ब्रिटिश नामकी प्रतिष्ठाकी रक्षाके लिए उतने ही उत्सुक हैं जितने खुद हम और यदि उस प्रतिष्ठाको कायम रखने के लिए आर्थिक त्याग करना भी आवश्यक हो तो मुझे विश्वास है कि वे खुशीसे वैसा करेंगे। महामहिमकी सरकारकी मान्यता है कि अधिवासी ब्रिटिश प्रजाजनोंपर वैसी निर्योग्यताएँ लादना, जिनके विरुद्ध हमने आपत्ति की थी, और जैसी भूतपूर्व गणतन्त्र सरकारके नियम भी, अगर उनकी सही व्याख्या की जाये तो, उनपर नहीं लादते, राष्ट्रीय प्रतिष्ठाके लिए अपमानजनक हैं; और इसमें उसको कोई सन्देह नहीं है कि जब यह बात ध्यानमें आ जायेगी तो उपनिवेशका लोकमत पेश की गई माँगका समर्थन नहीं करेगा।

सर हेनरी कॉटन: क्या मैं पूछ सकता हूँ कि वे कौन-से उपनिवेश मन्त्री थे?

अर्ल ऑफ एलगिन: यह श्री लिटिलटनने १९०४ में आपको ही लिखा था। अब जो सज्जन आज मेरे पास आये हैं, उनसे मुझे मालूम हुआ है कि हमें यहाँ सामान्य सहानुभूतियोंपर विचार नहीं करना है और न हमें उन अधिकारोंसे आगे कोई बात सोचनी है जो ब्रिटिश