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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाँचकी बात है, मुझे बतलाया गया है, इसकी भी स्थिति वही होगी जो अनुमतिपत्रको है। यह अनुमतिपत्र--यदि मेरा कथन ठीक है--ट्रान्सवालमें किसी भी व्यक्तिसे माँगा जा सकता है। यह स्थिति है। मैं इस विषयपर बहुत अधिक नहीं कहना चाहता। मैं तो केवल यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि ट्रान्सवाल सरकारने विधान लागू करनेकी स्वीकृति माँगते समय मेरे सामने ऐसे ही कारण रखे थे। यह बात स्पष्ट रूपसे मेरे मनमें बैठ गई थी कि कानूनमें किये गये ये सुधार भारतीय समाजको कुचलनेवाले नहीं हैं, बल्कि आगे चलकर ये लाभदायक ही सिद्ध होंगे, और इसीलिए मैंने उस विधानको लागू करनेको स्वीकृति दी।

सज्जनो, अब हम इस स्थितिमें हैं कि इसका विरोध किया जा रहा है। मेरे विचारमें श्री गांधी और श्री अली एक विशाल सभाके प्रतिनिधिके रूपमें जिस अधिकारको लेकर यहाँ आये हैं उसका किसी प्रकार विरोध किये बिना मुझे यह कह देना चाहिए कि मेरे पास ट्रान्सवालसे तार आये हैं, जिनमें सूचित किया गया है कि वहाँके ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे एक प्रार्थनापत्र मेरे नाम भेजा जा चुका है और उनका कहना है कि उसपर बड़ी तादादमें लोगोंने हस्ताक्षर किये हैं। उस प्रार्थनापत्रमें जो विचार व्यक्त किये गये हैं वे आज मेरे समक्ष रखे गये विचारोंके विपरीत हैं। वहाँकी आम रायके सम्बन्धमें आज मेरे पास दो और तार आये हैं। मेरे दो और तार कहनेका कारण यह है कि ट्रान्सवालकी विभिन्न नगरपालिकाओंसे बहुत-से अन्य तार भी आये हैं जिनमें मुझपर अध्यादेश पास करनेके लिए जोर दिया गया है, आदि। इसलिए विरोध तथा इस मामलेके विरोधके स्वरूपके बारेमें सर लेपेल ग्रिफिनने जो कुछ कहा है उससे मैं पूर्णतया सहमत नहीं हो सकता। यहाँ उपस्थित सभी सज्जनोंकी अपेक्षा मुझे इसपर अधिक खेद है। मेरा अनुमान है कि यदि इस कार्यालयके अभिलेखोंमें नहीं तो भारत-कार्यालयके अभिलेखोंमें अवश्य हो मेरे हस्ताक्षरोंसे युक्त ऐसे खरीते मौजूद होंगे जिनमें आजकी ही जैसी कठोर शब्दावली में ब्रिटिश भारतीयोंपर लगे प्रतिबन्धोंका विरोध किया गया है, किन्तु मैं अपने एक भी शब्दसे पीछे नहीं हटता। परन्तु हमें यह तथ्य स्वीकार करना ही पड़ेगा कि समस्त संसारमें गोरे समाजोंकी ओरसे खड़ी की गई कठिनाइयाँ हैं और हमें उनका खयाल रखना है। मैं यह नहीं कहता कि उन्हें हमेशा सफल ही होना चाहिए। जिन तफसीलोंमें किसी प्रकारके अत्याचारकी झलक हो उनमें उन्हें कदापि सफल नहीं होना चाहिए। परन्तु ऐसे मामलोंपर विचार करते समय इस भावनाके अस्तित्वको ध्यानमें रखना चाहिए।

मेरा खयाल है कि मुझे अब किसी बातका उत्तर नहीं देना है। प्रार्थनापत्रके अन्त में यह सुझाव दिया गया है कि एक आयोग द्वारा जाँच-पड़ताल किये जानेके लिए इस मामलेको कमसे-कम स्थगित कर दिया जाये। निःसन्देह यह ऐसा विकल्प है जिसपर अमल किया जा सकता है। परन्तु आज मैं यह कह सकनेको स्थितिमें नहीं हूँ कि यह सम्भव है या नहीं। वास्तवमें आप इसे सहज ही स्वीकार कर लेंगे कि यह आपके प्रति मेरा सर्वोत्कृष्ट सम्मान है कि जबतक मैंने आप लोगोंसे भेंट नहीं कर ली और आपकी बातें नहीं सुन लीं तबतक मैंने किसी निश्चयपर पहुँचनेका प्रयत्न नहीं किया। यही मेरी स्थिति है। श्री गांधीको जो कहना था सो मैंने सुन लिया। मुझे आशा है कि वह जो कुछ कहनेके लिए इतनी दूर आये हैं उसे उन्होंने अपनी इच्छानुसार पूरी तरह मेरे सामने रख दिया है। मैंने उन लोगोंकी बातें भी सुन ली हैं जो उनके साथ आये हैं। मैं उनके निवेदनोंपर