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पत्र: लॉर्ड एलगिनके निजी सचिवको

अच्छी विचार करूँगा; और मुझे जो उत्तरदायित्व लेना है उसे पूरी तरह समझते हुए निर्णय करना में अपना कर्तव्य समझँगा।

श्री गांधी: महानुभाव, क्या मुझे एक मिनटके लिए एक बात कहने की इजाजत है? मैंने लॉर्ड महोदयके शब्दोंको अत्यन्त ध्यानपूर्वक और बड़े ही कृतज्ञभावसे सुना है, परन्तु मैं यह निवेदन करना जरूरी समझता हूँ कि आपको एक बातके बारेमें जो सूचना मिली है वह सही नहीं है। आपने जिस अनुमतिपत्र शब्दका प्रयोग १८८५ के अध्यादेशके सम्बन्धमें किया था, उससे सम्बन्धित सूचनाका खण्डन मैं कागजी प्रमाण देकर कर सकता हूँ। यह अवसर उसके उपयुक्त नहीं है। फिर भी यदि श्रीमान हमें मिलनेका समय दें तो हम अवश्य ही ऐसा कर सकेंगे। परन्तु इससे यह स्पष्ट है कि हमारी स्थिति आयोगके सिवा और कोई भी आपके सामने ठीक-ठीक नहीं रख सकेगा।

सर लेपेल ग्रिफिन: महानुभाव, आप हमसे अत्यन्त कृपापूर्वक और शालीनताके साथ मिले और आपने धीरजसे हमारी बातें सुनीं, इसके लिए शिष्टमण्डलकी ओरसे मैं आपको हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। हम इस मामले में आपकी पूर्ण सहानुभूतिके बारेमें पहलेसे ही भली भाँति आश्वस्त थे।

(शिष्टमण्डल तब लौट आया।)

छपी हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल, इंडिया ऑफिस, ज्युडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स (४२८७-०६) से।

१३१. पत्र: लॉर्ड एलगिनके निजी सचिवको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर ८, १९०६

सेवामें
निजी सचिव
परममाननीय अर्ल ऑफ एलगिन
महामहिमके मुख्य उपनिवेश मन्त्री
उपनिवेश कार्यालय
लन्दन

महोदय,

लॉर्ड एलगिनने हमें कृपापूर्वक जो मुलाकात दी थी, उसके सिलसिलेमें हम जानना चाहते हैं कि क्या लॉर्ड महोदय हमें उस विरोधात्मक समुद्री तारका[१] भाव और उसे भेजनेवालों के नाम बतानेकी कृपा करेंगे, जो लॉर्ड महोदयको ट्रान्सवालके कुछ भारतीयोंके[२]पाससे प्राप्त

  1. इसमें यह आरोप लगाया गया था कि शिष्टमण्डल भारतीय समाजका प्रतिनिधि नहीं है और गांधीजी एक पेशेवर आन्दोलनकारी हैं, आदि। देखिए परिशिष्ट।
  2. डॉक्टर विलियम गॉडफ्रे और सी० एम० पिल्ले