पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समाज अध्यादेशका मसविदा तैयार करनेमें सहभागी नहीं है। समाजकी योजना निःसन्देह सख्त है लेकिन साथ ही सत्यमूलक भी। यदि कभी उसे मौका मिला तो उसका वह अंश, जो एशियाई विरोधी आन्दोलनका प्रतिनिधित्व करता है, ऐसा कानून पास करेगा जिसके द्वारा उपनिवेशमें बसे भारतीयोंको निष्कासित कर दिया जायेगा। स्मरण होगा कि तथाकथित राष्ट्रीय सम्मेलनमें जो प्रस्ताव पास किया गया था वह तत्त्वतः ऐसा ही था।

(६) और ट्रान्सवालको निकट भविष्यमें उत्तरदायी शासन प्राप्त होनेवाला है, यह इस बातका अतिरिक्त कारण है कि उक्त अध्यादेश द्वारा ब्रिटिश भारतीय स्थितिको हानि पहुँचानेके बदले उसे आगामी सरकारके जिम्मे इस रूपमें सौंपा जाये कि उसपर साम्राज्यीय स्वीकृति मिल सके; तात्पर्य कि यहाँके ब्रिटिश भारतीयोंको वही दर्जा प्रदान किया जाये जिसका लाभ केपके ब्रिटिश भारतीय उठा रहे हैं।

(७) क्षोभकारी वर्ग-विभेदोंके रूपमें सम्राट् के अधीनस्थ उपनिवेशोंकी शासन-परम्पराका जो इस खतरनाक ढंगसे परित्याग किया गया है, उसका औचित्य सिद्ध करनेके लिए कोई भी प्रमाण[१]

(८) चूँकि प्रश्नका सम्बन्ध उच्च कोटिके साम्राज्यीय मामलोंसे है, इसलिए इस अध्यादेशको, जो, घबराहट में पास किया गया विधान है, स्वीकृति देनेके पूर्वं साम्राज्य सरकारको खूब सोच-समझ लेना चाहिए।

सम्राट्की स्वीकृति रोक रखने के लिए हमने जो कारण ऊपर बताये हैं उन्हीं कारणोंसे एक आयोगकी नियुक्ति भी आवश्यक है, जो मामले की जाँच करके जनता और सरकारके समक्ष उन प्रमाणोंको प्रस्तुत करे जो आपके ही कथनानुसार अभी प्राप्त नहीं हैं। महोदय, आपने ठीक ही कहा है कि ट्रान्सवालसे भारतको लौटनेवाला हर भारतीय असन्तोषका बीज बोनेका व्रत लेकर वहाँ जाता है। हम, जिन्हें समाजका प्रतिनिधित्व करनेका सौभाग्य प्राप्त है, कह सकते हैं कि हमने आपके द्वारा उल्लिखित सार्वजनिक सभामें उपस्थित हजारों लोगोंकी भावनाओंको अत्यन्त संयत ढंग से व्यक्त किया है। इस कानूनके सम्बन्ध में आयोजित उस सभामें कटुताकी जैसी भावना व्याप्त थी उसे शब्दोंमें व्यक्त करना असम्भव है। जिस भारतीयकी स्थिति जितनी बुरी होगी, उसे उस अध्यादेश के अन्तर्गत उतनी ही अधिक मुसीबत झेलनी पड़ेगी। हो सकता है, इस अध्यादेशसे जो अत्याचार अवश्यम्भावी रूपसे फलित होनेवाला है उसके उग्रतम रूपसे धनी-मानी भारतीय अपने दर्जेके कारण बच निकलें। लॉर्ड मिलनरकी सलाहपर जो पंजीयन किया गया उसमें जोहानिसबर्ग, हीडेलबर्ग और पाँचेफस्ट्रूममें गरीब लोगोंको ही जाड़ेकी एक ठिठुरानेवाली सुबहको, चार बजे तड़के ही, अपने-अपने बिस्तर छोड़कर थाना या एशियाई कार्यालय, जिसको जहाँ भेजना जरूरी समझा गया, जानेपर मजबूर किया गया था[२]। इन्हें ही अध्यादेश के अन्तर्गत हर मौकेपर काफिर पुलिसके धक्के खाने पड़ेंगे, न कि उच्चवर्गीय भारतीयोंको। अतएव, वे इस दुर्व्यवहारको हमसे ज्यादा महसूस करते हैं, क्योंकि उनकी मुसीबतें उनके लिए एक सतत् उपस्थित वास्तविकता है।

सदासे भारतीय समाजका यह मत रहा है कि बड़े पैमानेपर अवैध आव्रजन जैसी कोई बात नहीं है; समाज ऐसे किसी आव्रजनको प्रोत्साहन देनेका कोई प्रयास नहीं कर रहा है;

  1. बड़ी संख्या में भारतीयोंके अनधिकृत प्रवेशका।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३१५-१६।