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'टाइम्स' को लिखे पत्रका मसविदा

दक्षिण आफ्रिका जाना जरूरी है, यदि आप ऐसा मानें तो क्या आप कृपा करके मुझे उनकी हालत के बारेमें एक प्रमाणपत्र भेज सकेंगे?

आपका हृदयसे,

डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड
लेडी मार्गरेट अस्पताल
ब्रॉमले
केंट

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिको फोटो नकल (एस० एन० ४५६६) से।

१७६. 'टाइम्स' को लिखे पत्रका मसविदा[१]

कॉस्टिट्यूशनल क्लब
[लन्दन]
नवम्बर १३, १९०६

सम्पादक
'टाइम्स'
[लन्दन]
महोदय,

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों के प्रश्नपर आपके वजनदार अग्रलेखका सभी विचारशील लोग स्वागत करेंगे। ट्रान्सवालसे भारतीय शिष्टमण्डलके आनेके कारण यह प्रश्न इधर प्रमुख रूपसे सामने आ गया है। मैंने आपके कथन ध्यानसे बार-बार पढ़े हैं और मुझे स्वीकार करना चाहिए कि जो कुछ आपने कहा है, उस सबसे यही निष्कर्ष निकलता है कि लॉर्ड एलगिन किसी भी प्रकार महामहिम सम्राट्को एशियाई कानून संशोधन अध्यादेशको मंजूर करनेकी सलाह नहीं दे सकते। सर लेपेलने लॉर्ड एलगिनसे यह बात बड़े सुन्दर ढंगसे कही थी: "पटेलेके नीचे पड़ा मेढक ही बता सकता है कि उसे चोट लगी है या नहीं और लगी है तो कहाँ।" इस अध्यादेशने, जो ब्रिटिश भारतीयोंको राहत देनेवाला बताया जाता है, भारतीय समाजको अत्यधिक उद्विग्न कर दिया है। दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीयोंके प्रश्नको, जिसे मैं सर्वाधिक महत्त्वका मानता रहा हूँ, जानने का श्रेय तो आप मुझे देंगे ही। श्रीमान्, आपने प्रश्नके साम्राज्यीय महत्त्वको बड़ी क्षमतासे दिखा दिया है।

कोई एक साल हुआ, ट्रान्सवालकी विधान परिषदकी बैठक में सर जॉर्ज फेरारने सुझाव दिया था कि पूरे मामलेकी जाँच करनेके लिए एक आयोग ट्रान्सवाल भेजा जाना चाहिए। मैंने तत्काल इस सुझावको स्वीकार कर लिया और मैं श्री लिटिलटनसे मिला। यदि वे इस समय भी उपनिवेश कार्यालय में होते[२] तो मुझे इसमें सन्देह नहीं कि वे आयोगकी नियुक्ति कर देते।

औपनिवेशिक सम्मेलन निकट आ रहा है। इस बातको ध्यान में रखते हुए यह और भी आवश्यक हो जाता है कि साम्राज्य सरकार ऐसा आयोग नियुक्त कर दे, जिससे सम्मेलनको

  1. यह मसविदा गांधीजीका लिखा हुआ है। देखिए "पत्र: सर मंचरजी मे० भावनगरीको", पृष्ठ १६०-६१। यह पत्र टाइम्समें प्रकाशित नहीं हुआ ।
  2. १९०५ में अल्फ्रेड लिटिलटनके बाद लॉर्ड एलगिन उपनिवेश-मन्त्री बने।