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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आगे बढ़ने के लिए विश्वसनीय तथ्य और आँकड़े मिल जायें। ऐसे आयोगकी नियुक्तिके बारेमें किसी क्षेत्रसे किसी प्रकार भी आपत्तिकी सम्भावना नहीं हो सकती। इस मामले में पहलेसे कोई मत स्थिर न हो जाये, इसलिए यह उचित होगा कि सम्बन्धित अध्यादेशको राजकीय मंजूरी तबतक न दी जाये जबतक ऐसे किसी आयोगकी, जो इस बारे में नियुक्त किया जाये, रिपोर्ट प्राप्त न हो जाये।

उस भयानक असन्तोषके बारेमें, जो दक्षिण आफ्रिकासे आनेवाले भारतीयों द्वारा फैलाया जा रहा है, आपकी रायका मैं समर्थन करता हूँ। आपने बहुत ठीक कहा है कि यह राजनीतिक निर्योग्यताओंका प्रश्न नहीं है, बल्कि एक सभ्य देशमें ब्रिटिश प्रजाजनके, अथवा मानवमात्रके भी, साधारण अधिकारोंको भोगने में असमर्थताका प्रश्न है। यदि उपनिवेश अपनी पृथक्करणको नीतिपर दृढ़ रहे तो वे मातृदेशपर एक बहुत ही गम्भीर समस्याके समाधानका भार लाद देंगे, जिसके विषय में स्वर्गीय सर विलियम विलसन हंटर[१] आपके स्तम्भों में बार-बार कहते रहते थे: "भारत ब्रिटिश राज्योंका एक अंग बना रहेगा अथवा नहीं?" यह बिलकुल स्पष्ट है कि यदि भारतके लोगोंका ब्रिटिश उपनिवेशों में बसते ही इस तरह अपमान किया जायेगा और उनका दर्जा इस प्रकार गिराया जायेगा जैसे वे किसी जंगली जातिके हों, तो इंग्लैंड के लिए भारतपर अधिकार बनाये रखना कठिन होगा।

आपका, आदि,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें संशोधित, टाइप किये हुए अंग्रेजी मसविदेकी फोटो-नकल (एस० एन० ४५५२) से।

१७७. पत्र: श्रीमती फ्रोथको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर १४, १९०६

प्रिय श्रीमती फीथ,

मुझे बहुत ही दुःख है कि मैं इतवारकी शामको आपसे नहीं मिल सकूँगा। यदि आप अगले हफ्ते किसी और शामको फुरसत में हों तो मुझे फिलहाल उसे स्वीकार कर लेनेमें सुविधा होगी।

मैंने जिस फोटोके बारेमें वादा किया था, वह भेज रहा हूँ। श्रीमती गांधीकी दाहिनी ओर मेरी विधवा बहनका इकलौता बेटा[२] है।

आपका हृदयसे

[संलग्न]
श्रीमती फ्रीथ
४८, फिंचले रोड, एन०

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४५६८) से।

  1. भारतीय मामलोंके अधिकारी विद्वान और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिके प्रमुख सदस्य। देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९६।
  2. गोकुलदास, रलियातवनका पुत्र।