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पत्र: थियोडोर मॉरिसनको

भारतीयोंकी तरह ही घृणा करते हैं उसका शरारत भरा कारण मैं हूँ। उनके रुखसे अध्यादेशकी स्वीकृति जाहिर नहीं होती बल्कि व्यक्तिगत रूपसे मेरे प्रति विरोध प्रकट होता है।

चूँकि उपनिवेश कार्यालयने उस "प्रार्थनापत्र" को देखनेकी मुझे अनुमति दे दी, इसलिए मैं यह समझ गया हूँ कि "पेशेवर आन्दोलनकारी" से उनका मतलब वैतनिक आन्दोलनकारी है। अतएव मैं यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि मैंने पिछले १३ सालोंमें अपने देशवासियोंके लिए जो कुछ किया है, केवल सेवा-भावनासे किया है और उससे मुझे बहुत आनन्द मिला है।

मेरी सेवाएँ उपयोगी हुईं या नहीं, इसके विषयमें मतभेद हो सकता है। स्वर्गीय सर जॉन रॉबिन्सनका[१] विचार था कि मेरी सेवाएँ निरुपयोगी नहीं हैं। दक्षिण आफ्रिकाकी ब्रिटिश भारतीय प्रजा और यूरोपीयोंके बीचकी गलतफहमीके कारणोंको हटाकर उनके सम्बन्धोंको दृढ़ करने के जो प्रयत्न मैं कर रहा हूँ उसमें श्री विलियम हॉस्केन[२] और ट्रान्सवालके दूसरे लोगोंने भी मुझे प्रोत्साहित किया है।

यह सारा स्पष्टीकरण पेश करनेका कारण केवल यही है कि कहीं ऐसा न हो कि यदि मैं उक्त आरोपोंका खण्डन न करूँ तो जिस पवित्र कार्यको करनेके लिए मैं यहाँ आया हूँ उसके विषयमें जनता के मनमें कोई पूर्वग्रह बन जाये।

[ आपका, आदि,
मो० क० गांधी]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-१२-१९०६

और टाइप किये हुए अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ४५७७) से।

१८७. पत्र: थियोडोर मॉरिसनको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर १६, १९०६

प्रिय महोदय,

मैंने जो कागजात भेजनेका वादा किया था, वे पत्रके साथ संलग्न कर रहा हूँ।

आप लॉर्ड एलगिनके साथ हुई भेंटका विवरण देखकर वापस करनेकी कृपा करें।

संलग्न
श्री थियोडोर मॉरिसन
मारफत पूर्व भारत संघ
९, विक्टोरिया स्ट्रीट, डब्ल्यू ०

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४५७८) से।

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १७१-७२।
  2. ट्रान्सवाल विधान-सभाके एक प्रमुख यूरोपीय सदस्य ।

६-१२