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पत्र: डब्ल्यू० टी० स्टेडफो

स्थान कहीं भी हो, जबतक वे आधे घंटे में या अधिक से अधिक पौन घंटे में वहाँसे ब्रिटिश म्यूजियम पहुँच सकते हैं तबतक चिंताकी कोई बात नहीं।

आपका हृदयसे,

श्रीमती स्पेंसर वॉल्टन
ऐंड्रयू हाउस
टनब्रिज

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ४५८०) से।

१९०. पत्र: डब्ल्यू ० टी० स्टेडको

होटल सेसिल
लन्दन
नवम्बर १६, १९०६

प्रिय महोदय,

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके सवाल के साथ आपने बहुत अधिक सहानुभूति दिखाने की कृपा की थी, इसलिए क्या मैं यह सुझा सकता हूँ कि आप ट्रान्सवालके बोअर नेताओंपर अपने प्रभावका उपयोग करें? मुझे विश्वास है कि उनके मनमें काफिरोंके विरुद्ध जैसा पूर्वग्रह है, वैसा ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध नहीं है। किन्तु जब ब्रिटिश भारतीयोंने ट्रान्सवालमें प्रवेश किया, तब वहाँ काफिर जातिके प्रति पूर्वग्रह उग्र रूपमें मौजूद था, इसलिए भारतीयोंको भी काफिर जातियोंके साथ गूंथ दिया गया और उनका वर्णन भी व्यापक अर्थोवाले " रंगदार " शब्दके अन्तर्गत होने लगा। धीरे-धीरे बोअरोंके मन इस विशेषणके अभ्यस्त हो गये और दक्षिण आफ्रिकाकी काफिर जातियों और ब्रिटिश भारतीयोंमें निस्सन्देह जो स्पष्ट और गहरा भेद है, उन्हें मान्य करनेसे उन्होंने इनकार कर दिया।

यदि आप अपनी सुस्पष्ट शैलीमें उनके सामने इस परिस्थितिको रखें और बतायें कि ब्रिटिश भारतीयोंके पीछे एक प्राचीन सभ्यताकी परम्परा है; ट्रान्सवालमें उन्हें राजनीतिक सत्ता प्राप्त करनेकी आकांक्षा नहीं है; वे वहाँ केवल मुट्ठी भर अर्थात् १३ हजारकी संख्या में हैं और भविष्य में बिना वर्ग-भेदको उग्र बनाये प्रवास आसानीसे नियमित किया जा सकता है, तो मुझे कोई सन्देह नहीं है कि बोअर नेताओंमें से कुछ लोग तो आपकी बात सुनेंगे और आपके सुझावोंको अमल में लायेंगे।

यदि उस दिशा में, जिसमें मैंने सुझाया है, आप बोअरोंके मनपर प्रभाव डालने का उपाय कर सकें, तो भारतीय समाज आपका बहुत अधिक कृतज्ञ होगा।

आपका विश्वस्त,

श्री डब्ल्यू० टी० स्टेड
मोब्रे हाउस
नॉरफोक स्ट्रीट
स्ट्रैंड

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४५८४) से।