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१९१. पत्र: हेनरी एस० एल० पोलकको

होटल सेसिल
[लन्दन]
नवम्बर १६, १९०६

प्रिय श्री पोलक,

अग्रलेख या अन्य सामग्री लिखनेके लिए मेरे पास एक क्षणका भी समय नहीं है। गॉडफेके प्रार्थनापत्र के बारेमें आपको 'इंडिया' में एक प्रश्नोत्तर[१] मिलेगा। क्या यह भाग्यकी विचित्र विडम्बना नहीं है कि जब डॉक्टर महोदय हमारे हितको पागलों की तरह नुकसान पहुँचाने में भरसक लगे हुए हैं, यहाँ उनके दो भाई हमारे उद्देश्यकी पूर्ति में जितना बन सकता है उतना सहयोग दे रहे हैं? इसलिए गणित शास्त्रकी दृष्टिसे एक व्यक्तिकी गतिविधियोंसे जो बुरा प्रभाव उत्पन्न हो रहा है वह मिट जाना चाहिए, विशेषतः उस अवस्थामें जब दूसरे दो व्यक्तियोंके प्रयास की दिशा सही है। सर मंचरजीने इस विषयमें 'टाइम्स' को एक पत्र[२] लिखा है । उसी तरह मैंने भी लिखा है[३]। मैं आपको अपने और गॉडफे-बन्धुओंके पत्रोंकी[४] एक-एक प्रति भेज रहा हूँ। आपके तारसे मालूम हुआ कि आपका संघ लॉर्ड एलगिनको तार भेज रहा है। लगता है यह पत्र लिखते समय तक तो तार पहुँचा नहीं है।

जानकारीके लिए मुझे शायद अगले हफ्ते तार भेजना पड़े।

हम लोग श्री मॉर्लेसे २२ तारीखको मिलेंगे। मेरा खयाल है कि शिष्टमण्डल जोरदार होगा। सर लेपेल ग्रिफिन उसका नेतृत्व करेंगे।

स्थायी समितिके लिए ४० पौंड वार्षिक किरायेपर एक कमरा ले लिया गया है। २५ पौंडके उपस्करण भी खरीद लिये गये हैं। कदाचित् सर मंचरजी अध्यक्ष होंगे। विशेष समाचार बादमें।

मुझे भय हैं कि हम लोग अगले महीने के पहले हफ्तेसे पूर्व रवाना नहीं हो सकेंगे, क्योंकि समितिको संगठित करनेकी आवश्यकता होगी और मॉर्लेसे भेंट हो जानेके बाद कुछ काम करना पड़ेगा।

श्री स्टेडसे हम लोगोंकी बहुत अच्छी बातचीत हुई। उन्होंने वादा किया है कि वे जो कुछ कर सकते हैं, सब करेंगे। इसलिए मैंने उन्हें सुझाया है कि वे अलग-अलग राष्ट्रोंके रंगदार लोगों में अन्तर करनेके लिए अपने बोअर मित्रोंको लिखें।[५]

  1. देखिए पाद टिप्पणी ३, पृष्ठ १६२।
  2. देखिए टाइम्सको लिखे पत्रका मसविदा, पृष्ठ १६९-७०।
  3. देखिए "पत्र: 'टाइम्स' को", पृष्ठ १५७-५९
  4. श्री जॉर्ज व्ही० गॉडफ्रे और श्री जेम्स डब्ल्यू० गॉडफ्रेने, जो लिकन्स इनमें अध्ययन कर रहे थे, १५ नवम्बर १९०६ को टाइम्सको पत्र लिखा जिसमें उन्होंने अपने भाई डॉ० गॉडफ्रेके प्रार्थनापत्रसे किसी प्रकारका भी सम्बन्ध अस्वीकार कर दिया। उन्होंने एशियाई अधिनियम- संशोधन अध्यादेशके प्रति पुनः तीव्र विरोध प्रकट किया और कहा कि श्री गांधी केवल "सेवा-भाव" से प्रेरित हैं और इसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं है। और वे डॉ० गोंडके व्यवहारका कोई कारण नहीं बता सकते। परिशिष्ट भी देखिए।
  5. देखिए पिछला शीर्षक।