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लन्दन भारतीय संघकी सभा

उन्होंने स्वतन्त्रता और स्वाधीनताके लिए अपूर्व उत्साहका परिचय दिया है। जिस भूखण्डको वे आज अभिमानपूर्वक इंग्लैंड कहते हैं, क्या उसके लिए उन्हें लड़ना नहीं पड़ा है? क्या कई शताब्दियों तक देशके भीतर और बाहर उनके शत्रु नहीं रहे हैं? जान पड़ता है कि इस जातिकी अद्भुत प्रतिभा असन्दिग्ध, निश्चित और निरन्तर प्रगतिको प्राप्त करनेमें स्वयं भूमिके शक्तिप्रद प्रभावके साथ एक हो गई है। महान अमरीकी लेखक आर० डब्ल्यू० इमर्सन कहता है "ये सैक्सन लोग मानव-जातिके हाथ हैं। इनको श्रमसे रुचि है और विलास या विश्रामसे अरुचि, तथा इनमें दूरवीक्षण यंत्रकी भाँति दूरस्थ लाभको देखनेकी क्षमता है। ये अपनी मानसिक शक्तिके बलपर, जिसकी अपनी मर्यादा और शर्तें हैं, धनोपार्जन करते हैं। सैक्सन काम अपनी रुचि अथवा स्वार्थके कारण करता है। यदि उससे काम करवाना हो और ऊसर ब्रिटेनसे बाहर उसकी दानवी क्षमताओंका लाभ उठाना हो तो निरादर, डाँट-डपट और पाबन्दियोंको हटाना जरूरी है; तभी उसकी शक्तियाँ खिलती हैं।"

इस प्रकार हम देखते हैं कि एक तरहसे इस जातिकी सम्पूर्ण मानसिक शक्ति ठीक अनुपात में विकसित होती रही है। विकासके लिए अंग्रेजोंका यह प्रयास निरन्तर चलता रहा है और उन्होंने खेलका संतुलन बनाये रखा है। "अंग्रेजके खेल में होती है ताकतके सामने ताकत, पैंतरेके सामने पैंतरा, खुला मैदान, ईमानदारीसे और बिना किसी चालबाजी या चकमे के सख्त झटका।" उनकी योग्यता और शक्तिके सम्बन्ध में युक्तिसंगत सन्देहकी गुंजाइश नहीं है। यहाँ एक क्षणके लिए उस देशके सम्पूर्ण ताने-बानेके किंचित् कृत्रिम स्वरूपको समझिए। स्वयं यहाँकी जलवायु और भौगोलिक स्थिति ऐसी अवस्थाओंके विरुद्ध है जो स्वाभाविक जीवनमें सहायक होती है। बेकन कहता है: "रोम ऐसा राज्य था जिसमें विरोधाभास नहीं थे; किन्तु इंग्लैंड तो प्रतिकूलता तथा विरोधोंपर ही टिका हुआ है और यह विसंगतियोंका पूरा अजायबघर है।" यद्यपि यह परिहासमें कहा गया है, फिर भी क्या यह सच नहीं कि "ब्रिटेन में पकाये हुए सेवोंके अलावा फल नहीं पकते", और फिर, क्या यह भी उतना ही सच नहीं है कि दूसरे देशोंकी तुलना में इस देशमें पहले कभी कोई उल्लेखनीय स्थानीय पशु नहीं पनपा? इन प्राकृतिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपने सतत धैर्य, चातुर्य, उत्साह और बलसे आगे के सब लोगोंको खदेड़ दिया है और अब वे खुद सबसे आगे हैं। ऐसा मालूम होता है, सारी जातिमें कोई गुप्त शक्ति व्याप्त है और उसको उन्नतिकी ओर ले जाती है। उनको अपनी कौमपर गर्व है और वे उससे प्रेम करते हैं। क्या हम प्रत्येक अंग्रेजको अपने अंग्रेज होनेपर गर्व करते और शेखी मारते हुए नहीं सुनते? क्या वह हर बार सतिरस्कार आपके मुँहपर नहीं कह देता कि अंग्रेज हूँ, इसलिए राज करता हूँ? उनमें एकता या उत्तरदायित्वकी भावना और पारस्परिक विश्वास है। अंग्रेजोंके सम्बन्धमें यह कहा गया है कि "वे अपने प्राणोंकी अपेक्षा अपने पक्षकी रक्षा अधिक दृढ़तासे करते हैं।"

निबन्धका खासा स्वागत हुआ। सर्वश्री बी० जे० वाडिया, एम० ए०; परमेश्वरलाल, एम० ए०; जे० गौरीशंकर, एम० ए०; नाथूराम; द्वारकादास और कई अन्य सज्जनोंने, जो इस विचार-गोष्ठी में सम्मिलित हुए थे, वक्ताको उदार दृष्टिकोण और योग्यताके साथ लिखे गये निबन्धपर बधाई दी। कुछ वक्ताओंका खयाल यह था कि श्री गॉडफेने अंग्रेजोंका चित्रण करते हुए उनके पक्ष में अतिशयोक्तिसे काम लिया है। किन्तु श्री गॉडफेने अपने उत्तरमें सदस्योंको उनके सहानुभूतिपूर्ण स्वागत के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने अंग्रेजोंके चरित्रका दूसरा पक्ष