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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
 

जानबूझ कर छोड़ दिया है; वे संघके सदस्योंके सम्मुख उन्हीं बातोंको रखना चाहते थे जिनको वे उनके चरित्रमें सर्वोत्तम समझते थे और जो अनुकरण करनेके योग्य हैं। वक्ता और अध्यक्षको धन्यवाद देनेके बाद कार्रवाई समाप्त कर दी गई।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-१२-१९०६

१९६. अखिल इस्लाम संघ[१]

[नवम्बर १६, १९०६ के बाद]

तीन नवम्बरको काइटीरियन रेस्तराँमें अखिल इस्लाम संघकी, जिसका मुख्य कार्यालय लन्दनमें है, एक बैठक हुई। यह बैठक संघ के संस्थापक और सेवा-निवृत्त होनेवाले मन्त्री श्री अब्दुल्ला-अल-मैमून सुहरावर्दी एम० ए०, एम० के० आर०एस०, बैरिस्टरके सम्मान में हुई । स्वागत समारोहमें श्री सैयद अमीर अली (कलकत्ता उच्च न्यायालयके भूतपूर्व न्यायाधीश) श्री दादाभाई नौरोजी, श्री श्यामजी कृष्णवर्मा, श्री एस० ए० कादिर, कुमारी मार्था क्रेग, कुमारी ए० ए० स्मिथ, श्रीमती कॉन्सेल, माननीय हमीद बेग (तुर्की साम्राज्य के सलाहकार), श्रीमती हमीद बेग, कुमारी फैजी (जो मद्रास विश्वविद्यालयकी एक छात्रा हैं और अब शिक्षिकाका प्रशिक्षण पा रही हैं), माननीय मुइन-उल-विजारत (फारसी वाणिज्य दूतावास के कार्याध्यक्ष), डॉ० पोलक और कई और सज्जन उपस्थित थे।

लखनऊ के श्री एम० एच० किदवईने अतिथियोंका स्वागत किया।

निवर्तमान मन्त्री श्री सुहरावर्दीने लन्दन में प्रतिष्ठाका जीवन बिताया है। उन्होंने काफी दुनिया देखी है और 'मालकी लॉ' तथा 'सेइंग्ज़ ऑफ मुहम्मद' नामक पुस्तकें लिखी हैं। अखिल इस्लामवादको उन्होंने अपने जीवनका लक्ष्य बना लिया है। अपने लम्बे, किन्तु प्रभावशाली भाषण में उन्होंने स्पष्ट बताया कि अखिल इस्लामवादका ध्येय अपने तत्वावधान में मुसलमानोंके विभिन्न पन्थोंको एक करना तथा विश्व बन्धुत्वको प्रोत्साहन देनेके लिए पैगम्बरके मतका शान्तिपूर्ण प्रचार करना है।

यह संघ, जिसका नाम मूलत: अंजुमन-ए-इस्लाम था, सन् १८८६ में लन्दन में स्थापित किया गया था। जून २३, १९०३ को इसका नाम बदल कर अखिल इस्लाम संघ कर दिया गया। किसी समय श्री अमीर अली इस संस्थाके अध्यक्ष थे।

संघके माने हुए ध्येय निम्नलिखित हैं।

(क) मुस्लिम समाजकी धार्मिक, सामाजिक, नैतिक और बौद्धिक प्रगतिको प्रोत्साहन देना।

(ख) सारे संसारके मुसलमानोंके लिए सामाजिक संगठन के हेतु एक केन्द्र प्रस्तुत करना।

(ग) मुसलमानोंमें भ्रातृ-भावनाको प्रोत्साहन देना और उनका परस्पर मेल-जोल सुकर बनाना।

  1. यह "इंडियन ओपिनियनकी विशेष रिपोर्ट" के रूपमें "श्री सुहरावर्दी, एम० ए०, एम० के० आर० एस० का स्वागत" उपशीषकसे प्रकाशित किया गया था; इसका मसविदा गांधीजीका तैयार किया हुआ जान पड़ता है; देखिए "पत्र: हेनरी एस० एल० पोलकको", पृष्ठ १८०-८१।