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शिष्टमण्डल : श्री मोर्लेकी सेवामें

जो उन्हें ६ महीने में अदा करने की शर्तपर मिल जाता है। यदि ब्रिटिश भारतीयोंके खिलाफ सचमुच कहने लायक आम मुखालफत होती, तो महोदय, मुझे लगता है कि वे वहाँ एक दिन भी न टिक पाते। क्रूगर्सडॉर्पके महापौरने एक सभा बुलाई थी जिसमें कुछ गोरे आये और जहाँ यह प्रस्ताव किया गया कि वे जमीन खरीदने और बेचने के मामले में ब्रिटिश भारतीयोंका बहिष्कार करेंगे। यह बहिष्कार एक दिन भी नहीं टिका। सारे ट्रान्सवालमें एक ही जगह ऐसी है जहाँ उन्हें बहिष्कारके प्रयत्न में कुछ सफलता मिली। हमारा खयाल है कि यदि सरकारसे संरक्षण प्राप्त टुटपुँजिये गोरे दुकानदारोंमें सीमित पूर्वग्रहको हटा दिया जाये, तो हम स्वयं अपना रास्ता आप ही निकाल सकते हैं। यदि यह नहीं हो सकता, तो यह आसानीसे समझा जा सकता है कि हमारी स्थिति असह्य हुए बिना नहीं रहेगी; नहीं तो महोदय मेरी समझ में ट्रान्सवालमें हमारी इस समय जो स्थिति है वह आज भी कायम रखी जा सकती है।

श्री मॉर्ले : श्री गांधी, क्या आप इस समय उनकी स्थितिकी बात कह रहे हैं जो पहले ही ट्रान्सवालके निवासी हैं?

श्री गांधी : जी हाँ, महोदय; अध्यादेश केवल उन्हींपर लागू होता है जो इस समय वहाँ के निवासी हैं और जो शान्ति-रक्षा अध्यादेश के अन्तर्गत ट्रान्सवालमें आनेवाले हैं। भविष्य में होनेवाले प्रवेश के विषयमें कदाचित् मेरे मित्र श्री अली कुछ कहेंगे। मैं प्रसंगवश इतना ही कह सकता हूँ कि हमने सारी स्थिति छोड़ दी है और प्रतिबन्धके सिद्धान्तको केप अधिनियमके अनुसार स्वीकार कर लिया है। यही एक ऐसा अधिनियम है जो बिना वर्ण-भेदकी रेखा खींचे शैक्षणिक जाँच कारण—जो बहुत सख्त जाँच है—ब्रिटिश भारतीयों के उपनिवेशोंमें प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाता है। किन्तु हमने इसे बुद्धिमानी माना है कि हम व्यापारिक परवानों के मामले में भी इस स्थितिको मान लें। हमने कहा है कि नये व्यापारिक परवानों के मामले में हम अपने अधिकारोंका नगरनिकायों द्वारा विनियमन और नियन्त्रण मान लेंगे; किन्तु ऐसे विधान दूसरोंपर भी लागू होने चाहिए—केवल ब्रिटिश भारतीयोंपर ही नहीं। मेरा अनुभव है कि जहाँ कोई विधान किसी वर्ग-विशेषपर लागू किया जाता है, वहाँ उसका पालन बड़ी सख्ती से होता है और जहाँ सभीपर लागू होनेवाला विधान होता है, वहाँ राहत पानेकी गुंजाइश रहती है। महोदय, मेरा खयाल है कि सरकार उन लोगोंपर जुल्म नहीं करना चाहती जिनके न जबान है, न मताधिकार। मैं इस तथ्यका उल्लेख इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि हमें कोई राजनीतिक सत्ता चाहिए। हम यह बात साफ कर चुके हैं कि जहाँतक ब्रिटिश भारतीयोंका सम्बन्ध है, उन्हें किसी भी राजनीतिक सत्ताकी कोई आकांक्षा नहीं है, किन्तु यदि हमें मताधिकारहीन रहना है तो मैं निश्चय ही यह सोचता हूँ कि सरकारको मताधिकारहीन लोगों की रक्षा करनी चाहिए। और सो भी जैसे-तैसे नहीं, बल्कि वह संरक्षण एक वास्तविक शक्ति होनी चाहिए; और महोदय, हम जिस संरक्षणके हकदार हैं, उसकी प्राप्तिके लिए, अपने समाजके अधिवक्ता और न्यासीकी हैसियतसे, हम आपके मुखापेक्षी हैं, और यह आश्वासन, कि हमें वह संरक्षण प्राप्त है, हम आपसे चाहते हैं। (तालियाँ)!

श्री अली : महोदय, मुझे ऐसा नहीं लगता कि अपने उद्देश्यके बारेमें आपसे अधिक कहने की मुझे कोई जरूरत पड़ेगी; श्री गांधीने सभी मुद्दे और तथ्य प्रस्तुत कर दिये हैं। मुझे अपने समाजकी ओरसे केवल ट्रान्सवालमें उनकी स्थितिको विशेष रूपसे आपके सामने रखनेका आदेश मिला है। वे अनुभव करते हैं—और बड़ी तीव्रतासे—कि ब्रिटिश सरकारके अन्तर्गत'