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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ट्रान्सवालका शासन उनके विरुद्ध वर्ग-भेदपर आधारित विधान पेश कर रहा है जब कि आरमीनियाई, सीरियाई, ग्रीक, रूसी, पोलैंडके यहूदी आदि हजारों विभिन्न कौमोंके परदेशी बिना किसी अपमान और रोक-टोकके ट्रान्सवालमें प्रवेश कर रहे हैं। हमारे बन्धुगणोंको १८५७ का घोषणापत्र और साथ ही वह सन्देश[१] भी याद है जो दिल्ली दरबारके समय राजाने लोगोंको ब्रिटिश झंडेके नीचे उनकी स्वतन्त्रताका आश्वासन देते हुए भेजा था; इसलिए वे बड़ी तीव्रताके साथ ऐसा महसूस करते हैं कि इस अध्यादेश के पास होनेसे वे अत्याचार और अपमानके शिकार हुए हैं।

मैंने अभी आपसे परदेशियोंकी बात की है। अब बड़ा प्रश्न यह है कि यूरोपियोंकी भावना—अर्थात् उपनिवेशियोंकी भावना हमारे खिलाफ है। उपनिवेशवासियोंने किसी भी रूप या प्रकारसे ट्रान्सवालमें हमारे भाइयोंको अपमानित करनेकी माँग नहीं की है। उन्होंने हमारी व्यापारिक स्पर्धासे संरक्षण मांगा है; यह स्पर्धा उनके बहुत खिलाफ जाती है और महोदय, वे इतना ही चाहते हैं कि ट्रान्सवालमें एशियाइयोंकी जबर्दस्त बाढ़ देखने में न आये। हमने समय-समयपर सरकारसे कहा है कि हममें से जो लोग ट्रान्सवालमें हैं, वे एशियाइयोंको बड़ी संख्या में आया हुआ देखनेके इच्छुक नहीं हैं और श्री डंकनने स्वयं कहा कि साम्राज्यीय सरकार ट्रान्सवालकी उत्तरदायी सरकारकी हद तक इस प्रश्न तथा प्रवेशके प्रश्नपर विचार करेगी। चूँकि हमें विधान परिषद में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, साम्राज्यीय सरकार ही हमारी एकमात्र रक्षक है। अब मैं केवल एक बात यह बताना चाहता हूँ कि किस प्रकार यह विधान और यह अध्यादेश लादा गया। एक धारा इस नये अध्यादेशके प्रभावसे अछूती बची थी, उसके द्वारा डचोंके वंशज इस अध्यादेशकी परिधिसे बाहर रह जाते थे, किन्तु दक्षिण आफ्रिकामें, यहाँतक कि ट्रान्सवालमें, जन्म लेनेवाले भारतीय बच्चोंके लिए भी इसमें कोई गुंजाइश नहीं रखी गई। इसके सिवा स्वयं मैंने श्री डंकनका ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित किया कि यह अनुचित है। यदि दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न किसी भी एशियाईके साथ रियायत की जाती है, तो भारतीय बच्चोंके साथ रियायत न करना अनुचित है। में एक उदाहरणसे यह भी बताना चाहता हूँ कि बोअर सरकारके अधीन भी तुर्की के सुलतानकी मुसलमान प्रजापर इस अध्यादेशका विपरीत असर पड़ता था, किन्तु उन्हींकी ईसाई प्रजापर नहीं। अब आप देख सकते हैं कि अध्यादेश भारतीयोंके प्रति कितना अन्यायपूर्ण है।

मैं विस्तारसे बातचीत करनेकी आवश्यकता नहीं देखता, किन्तु मैं आपसे केवल इतना कहूँगा कि शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत हमारे वर्तमान अनुमतिपत्र शिनाख्तगी के लिए बिलकुल पर्याप्त हैं और उनके द्वारा ऐसे किसी भी भारतीयका पता लगाया जा सकता है जो बिना आज्ञाके गैरकानूनी तौरपर ट्रान्सवालमें हो। इसलिए नया अध्यादेश पेश करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है, और न इस बातकी ही कि फिलहाल इन अनुमतिपत्रोंके होते हुए हमें अपमानित किया जाये। हमें लगता है कि इसका मंशा हमारे खिलाफ है और महोदय हम इसे अपमानजनक समझते हैं। हमारे विचारसे यह अध्यादेश सिद्धान्ततः खराब है, क्योंकि

  1. सन् १९०३ का सम्राट ऐडवर्डका सन्देश।