पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/२९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२८२. पत्रः अखबारोंको[१]

होटल सेसिल
स्ट्रैंड, डब्ल्यू॰ सी॰
नवम्बर ३०, १९०६२[२]

सेवामें
सम्पादक
'टाइम्स'
[लन्दन]

महोदय,

क्या आप ट्रान्सवालसे आये भारतीय शिष्टमण्डलके बिदा होनेके अवसरपर भारतीय मामले के उन समर्थकोंको धन्यवाद देनेकी अनुमति देंगे जिन्होंने हमें अपने मामलेको साम्राज्य-सरकार तथा ब्रिटिश जनताके सामने रखनेमें मूल्यवान सहायता दी है? विभिन्न विचारोंका प्रतिनिधित्व करनेवाले सज्जनों, सभी दलों तथा अखबारोंसे हमें जो पूर्ण सौजन्य प्राप्त हुआ उससे हमें अत्यन्त सन्तोष है और हममें नई आशा जग उठी है। हम लन्दनमें थोड़े ही समय रहे, इसलिए हम उन सब लोगों के पास नहीं जा सके जिनसे मिलना चाहते थे। फिर भी, उन लोगोंसे भी हमें समर्थन मिला है और सहानुभूति प्राप्त हुई है।

उपर्युक्त बातोंसे जो पाठ हमें मिला है वह यह कि हम ब्रिटिश लोगोंकी ईमानदारी और न्यायबुद्धिपर भरोसा कर सकते हैं और जिस मामलेका हम समर्थन कर रहे हैं वह न्यायोचित है। क्या हम इस मामलेको पुनः संक्षेपसे दे सकते हैं? हम ट्रान्सवालमें कोई राजनीतिक अधिकार नहीं माँगते। लेकिन हम सादर और दृढ़तापूर्वक देशमें पहलेसे बसे हुए लोगोंके लिए नागरिकताके साधारण अधिकारोंका दावा करते हैं; अर्थात् समस्त समाजके हितकी दृष्टिसे आवश्यक बातोंका खयाल करते हुए उन्हें भूस्वामित्वका अधिकार, आने-जानेकी आजादी और व्यापारकी स्वतंत्रता दी जाये। संक्षेपमें ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय आत्माभिमान तथा गौरवके साथ ट्रान्सवालमें रहने के अधिकारका दावा करते हैं। भारतीय समाज हर तरहके वर्गभेदका विरोध करता है। और उसने एशियाई कानून संशोधन अधिनियम के खिलाफ इसीलिए आवाज उठाई है कि वह उपर्युक्त सिद्धान्तोंका अत्यन्त क्रूरताके साथ हनन करता है। हमारी नम्र सम्मतिमें, यदि हम अपने देशवासियोंके लिए जिनका कि हम प्रतिनिधित्व करते हैं, उपर्युक्त अधिकार नहीं प्राप्त कर सकते तो ब्रिटिश भारतीय शब्द निरी बकवास

  1. यह दूसरे पत्रोंको भी भेजा गया था और १-१२-१९०६ को दक्षिण आफ्रिकामें प्रकाशित हुआ। इसके बाद इसे ७-१२-१९०६ को इंडिया में और २९-१२-१९०६ को इंडियन ओपिनियन में कुछ शाब्दिक हेरफेरके साथ पुनः प्रकाशित किया गया था।
  2. साउथ आफ्रिकामें प्रकाशित पत्रपर नवम्बर २९ की तारीख है।