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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


८. इस अधिनियम के अन्तर्गत बहुत पुराने रहनेवाले अत्यन्त सम्मानित भारतीय व्यापारी व्यापारिक परवानोंसे, अर्थात् अपने निहित अधिकारोंसे, वंचित कर दिये गये हैं। यह बात सर्वश्री दादा उस्मान और हुंडामलके मामलोंमें हुई है।[१]

९. एक समय परवाना अधिकारियोंके द्वारा अपने अधिकारोंके मनमाने प्रयोगके कारण उनकी बदनामी हुई थी। श्री चेम्बरलेनने एक जोरदार खरीता भेजा और नेटालके तत्कालीन मन्त्रिमण्डलने नेटालकी नगरपालिकाओंको एक परिपत्र[२] भेजा कि यदि वे प्राप्त अधिकारका प्रयोग उचित रूपसे, नरमीसे और निहित स्वार्थीका उचित ध्यान रखते हुए न करेंगी तो अधिनियम में ऐसा संशोधन कर देना पड़ेगा जिससे सर्वोच्च न्यायालयका स्वाभाविक अधिकार-क्षेत्र पुनः स्थापित हो जाये।

१०. यह निवेदन है कि यदि भारतीय व्यापारियोंको, उनका उपनिवेशमें जो कुछ है, वह सब गँवा नहीं देना है तो सर्वोच्च न्यायालयका परवाना अधिकारियोंके निर्णयोंपर पुनविचारका अधिकार जल्दीसे जल्दी बहाल कर दिया जाना चाहिए।

११. स्वर्गीय श्री एस्कम्बने अपने अन्तिम दिनोंमें परवाना अधिकारियोंके निर्णयोंके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपीलके अधिकारको छीननेपर खेद प्रकट किया था।

नगरपालिका विधेयक

१२. भारतीय करदाताओंको नगरपालिका मताधिकार से वंचित करनेका प्रयत्न बिलकुल अन्यायपूर्ण और अपमानजनक माना गया है।

१३. भारतमें संसदीय मताधिकारपर आधारित प्रातिनिधिक संस्थाएँ हैं या नहीं, यह विवादग्रस्त है। किन्तु नगरपालिका-मताधिकारके बारेमें सन्देह नहीं किया जा सकता।

१४. स्वर्गीय सर जॉन रॉबिन्सन और स्वर्गीय श्री एस्कम्बने जोर देकर कहा था कि भारतीय समाजको नगरपालिका-मताधिकारसे वंचित करना उचित नहीं है।[३]

१५. ऐसे कानूनको मँजूर करनेका नैतिक असर बहुत गम्भीर होगा और भारतीयोंकी प्रतिष्ठा उपनिवेशी लोगोंकी दृष्टिमें और भी कम हो जायेगी।

निष्कर्ष

१६. अब मुझे केवल यही और कहना है कि नेटालके सम्बन्धमें उपाय पूर्णतः साम्राज्य-सरकारके हाथमें है। नेटालकी समृद्धि भारतसे गिरमिटिया मजदूर निरन्तर लाते रहनेपर निर्भर है। नेटाल जब अपनी भारतीय आबादी के साथ न्याय और शिष्टताका बर्ताव करनेसे इनकार करता है तब उसको भारतसे गिरमिटिया मजदूर जुटानेकी छूट नहीं दी जा सकती।

मो॰ क॰ गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल : सी॰ ओ॰ १७९, खण्ड २३९ / दफ्तरी, विविध।
  1. देखिए खण्ड ४ और ५।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ९९
  3. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ २०५-६।