क्या बादमें आप लोगोंको उत्तरदायी शासनसे डर नहीं है? उत्तरदायी शासन यदि इससे भी ज्यादा खराब कानून पास करे तो? हमने उत्तर दिया कि इससे ज्यादा खराब और किसी कानूनकी हम कल्पना ही नहीं कर सकते। हम तो यही चाहते हैं कि यह कानून रद्द हो। फिर जो होना होगा सो होगा। उसके बाद उन्होंने कहा कि इस कानून तथा फ्रीडडॉर्पके कानूनके सम्बन्धमें और सामान्यतः इस सम्पूर्ण प्रश्नपर जो कुछ भी कहना हो वह संक्षेप में—सिर्फ एक कागजभर—लिखकर भेज दीजिए।[१] उसे वे पढ़ेंगे और विचार करेंगे। इसके बाद श्री अलीने श्री चर्चिलको याद दिलाया कि लड़ाईसे[२] वापस लौटते समय आपको पाइंटपर लेनेके लिए जो अली आया था वही अली आज आपके सामने भारतीय समाजके लिए न्याय माँग रहा है। इसपर चर्चिल हँसे और श्री अलीकी पीठ थपथपाकर कहने लगे कि उनसे जितना भी बनेगा, करेंगे। इस उत्तरसे और भी आशा बँधी है। श्री चर्चिलने जैसी चिट्ठी माँगी थी, वैसी भेज दी गई है।
'डेली न्यूज' को भेंट
इन सम्पादक महोदयका नाम श्री गार्डिनर है। उन्हें हमने सब बातें बताई तो उन्होंने सख्त लेख लिखनेका वचन दिया और दूसरे दिन एक तीखा लेख छपा।
शुभचिन्तकोंको भोज
कहना होगा कि तारीख २९ को प्रतिनिधियोंका अन्तिम काम समाप्त हो गया। जिन महानुभावोंने मदद दी थी, उन्हें उन्होंने होटल सेसिलमें भोज दिया और उनके समक्ष समितिकी रूपरेखा पेश की। भोजमें काफी लोग शामिल हुए थे। उसमें लॉर्ड रेने बहुत अच्छा और जोरदार भाषण दिया। दूसरे भाषण भी प्रभावशाली हुए। इसकी और समितिकी रिपोर्ट में अलगसे देना चाहता हूँ, इसलिए यहाँ ज्यादा नहीं लिख रहा हूँ।
प्रतिनिधियोंका विदाईपत्र
प्रतिनिधियोंने अखबारोंमें कृतज्ञता-सूचक पत्र भेजा है[३]। उसमें उन्होंने लिखा है कि भारतीय प्रजा उपनिवेशके साथ लड़ना नहीं चाहती, बल्कि हिलमिलकर काम लेना चाहती है। जब समाजपर आघात होता है, तब विवश होकर ढाल अड़ानी पड़ती है। जहाँतक सम्भव है वह उपनिवेशके लोगोंके विचारोंके सामने झुककर चलना चाहता है। लेकिन वह यह चाहता है कि जो सामान्य अधिकार हर नागरिकके पास होने चाहिए उनमें जरा भी परिवर्तन न किया जाये।
विदाई
दिसम्बर १ को वाटरलू स्टेशनसे प्रतिनिधि रवाना हुए। उन्हें पहुँचानेवालोंमें सर मंचरजी, श्री जे॰ एच॰ पोलक, श्री रिच, गॉडफ्रे बन्धु, श्री सुलेमान मंगा, श्री मुकर्जी, श्रीमती पोलक, कुमारी स्मिथ, श्री सीमंड्स, प्रोफेसर परमानन्द, श्री रत्नम् पत्तर वगैरह शामिल थे।