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शिष्टमण्डलकी टीपे—४

 

मददगारोंके प्रति कृतज्ञता

सार्वजनिक काम करनेवाले लोगों में से जिन लोगोंने मदद दी उनके नाम दिये जा चुके हैं। उनके प्रति आभार भी प्रकट किया जा चुका है। लेकिन जिन्होंने बिना नामकी इच्छाके मदद की है, उनका आभार मानना शेष रहा है। उनमें हैं श्री सीमंड्स, कुमारी लॉसन, श्री जॉर्ज गॉडफ्रे, श्री जेम्स गॉडफ्रे, श्री रिच, श्री मणिलाल मेहता, श्री आदम गुल, श्री मंगा और श्री जोज़ेफ़ रायप्पन हैं। श्री सीमंड्स और कुमारी लॉसनको वेतन मिलता था। लेकिन उन्होंने वैतनिक जैसा काम नहीं किया। रात-रातभर जागनेवालोंमें वे लोग थे। उसमें उन्होंने आनाकानी नहीं की। दोनों गॉडफ्रे हमेशा हाजिर रहते और मदद करते थे; और जब श्री गुल और श्री मंगाकी जरूरत होती, वे भी आ जाते थे। इसी तरह श्री रत्नम पत्तर हैं। वे अभी विलायत में पढ़ रहे हैं। वे भी मदद के लिए आते थे। यदि इस तरह मदद न मिली होती, तो लोकसभा के सदस्योंका जो काम सोचा गया था, वह नहीं हो पाता। उनके लिए ही २,००० सूचनापत्र निकालने पड़े थे। वह सारी डाक तैयार करके भेजनेमें कितना समय लगा होगा, इसे हर कोई समझ सकेगा। श्री रिचकी प्रशंसा करते नहीं बनती। उनके कामसे सारा भारतीय समाज परिचित है। प्रोफेसर परमानन्दने भी आवश्यक मदद की थी।

श्री रिचका भाषण

पूर्व भारत संघ में श्री रिचने भाषण दिया था।[१] वह भी अलगसे दिया गया है, इसलिए यहाँ नहीं दे रहा हूँ।

मदीरामें तार

यह काम पूरा करके हम 'ब्रिटन' जहाज द्वारा बिदा हुए। 'ब्रिटन' के मदीरा पहुँचनेपर हमें दो तार मिले। एक तार श्री रिचकी ओरसे और दूसरा जोहानिसबर्गसे आया था। दोनोंमें सूचना थी कि लार्ड एलगिनने अध्यादेश रद कर दिया है। यह आशा नहीं थी। पर ईश्वरकी महिमा न्यारी है। अन्तमें सच्ची मेहनतका फल सच्चा होता है। भारतीय समाजका मामला सच्चा था और परिस्थितियाँ भी सब अनुकूल रहीं। परिणाम शुभ निकला। इससे फूलना नहीं है। लड़ाई अभी बहुत बाकी है। भारतीय समाजको अपनी बहुत-सी जिम्मेदारियाँ निभानी हैं। हम अपनी योग्यता साबित करेंगे तभी हम इस सफलताको पचा सकेंगे, नहीं तो यह सफलता जहर जैसी भी हो सकती है। इसपर विशेष चर्चा बादमें करेंगे ।

नेटालकी लड़ाई

लार्ड एलगिनने नेटालके सम्बन्धमें लिखित[२] मसविदा माँगा था। वह उन्हें भेज दिया गया है। अब परिणाम क्या होता है, यह धीरे-धीरे मालूम होगा। जो स्थायी समिति बनाई गई है उसके सामने मंथनके लिए नेटाल और फ्रीडडॉर्पका काम है, इसलिए उसे फुरसत नहीं मिलेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,' २९-१२-१९०६
  1. देखिए "पूर्व भारत संवमें श्री रिचका भाषण", पृष्ठ २७२-२७३।
  2. देखिए "पत्र : लॉर्ड एलगिनके निजी सचिवको" का संलग्नपत्र, पृष्ठ २६९-७०।