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२९४. डर्बनके मानपत्रका उत्तर

गांधीजी और हाजी वजीर अलीको मानपत्र भेंट करनेके लिए नेटाल भारतीय कांग्रेसकी एक बैठक मंगलवार जनवरी १, १९०७ को डर्बनमें हुई थी। श्री दाउद मुहम्मद अध्यक्ष थे। मानपत्रके उत्तर में गांधीजीने कहा :

[डर्बन
जनवरी १, १९०७]

बहुत समय बीत गया है, इसलिए अधिक नहीं बोलूँगा। यहाँ श्री अली और मेरे सम्बन्धमें जो कुछ कहा गया है उसके लिए मैं आभारी हूँ। हमें यहाँ संगठित होकर रहना चाहिए। हम संगठित रहकर नम्रतापूर्वक किन्तु दृढ़ता के साथ अपने उचित हकोंकी माँग करेंगे। उसकी सुनवाई होगी ही। विलायतमें हमें जो मदद मिली, वह यदि न मिलती तो हम कुछ नहीं कर पाते। ब्रिटिश राज्य न्यायी है, इसलिए यदि हम उसके सामने अपने कष्ट रखेंगे तो हमें न्याय मिल सकेगा। यह हमने देख लिया है। किन्तु हमें जो विजय मिली है उससे हमें बहुत खुश नहीं होना है। हमारी लड़ाईका प्रारम्भ अभी ही हुआ है। अब इस विजयको बनाये रखना हमारे हाथ है। यहाँकी सरकारको हमें समझाना होगा। मैं अपना भाषण समाप्त करने से पहले आप सबसे याचना करता हूँ कि कौमकी भलाईके कामोंमें तन-मन-धनसे आगे बढ़कर हाथ बँटायें और सभी भाई अपने कर्त्तव्यका पालन करें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-१-१९०७
 

२९५. भोजनोपरान्त भाषण

गांयोजी और श्री अलीके सम्मानमें एम॰ सी॰ कमरुद्दीनकी पेढ़ीने बुधवार जनवरी २, १९०७ को ग्रे स्ट्रीट के अपने अहाते में एक भोज दिया था। उक्त अवसरपर पहले पेढ़ीके प्रबन्धक बोले और बादमें गांधीजी और श्री अलीने उसका उत्तर दिया। निम्नलिखित अंश उन दोनोंके भाषणोंका संयुक्त विवरण है :

[डर्बन, जनवरी २, १९०७]

सर्वश्री गांधी और अली दोनोंने उत्तर दिया तथा लन्दनमें अपने कामका विवरण सुनाया। यद्यपि मुकाम लम्बा नहीं था, फिर भी वे लोग उस अवधिमें प्रधानमंत्रीसे लेकर बड़ेसे-बड़े और छोटेसे-छोटे सभी वर्गों के राजनीतिज्ञोंसे मिले। युक्तिसंगत तरीकेसे प्रस्तुत उस मामलेको सुनकर किसी भी व्यक्तिने, फिर वह किसी भी दलका क्यों न हो, उसके समर्थनमें आना-कानी नहीं की। कुछ अंदाज देनेके विचारसे प्रतिनिधियोंने बताया कि लन्दनमें उनके कामपर एक-एक पेनीकी ५,००० टिकटें सर्फ हुईं। उन्होंने दक्षिण आफ्रिकाका मामला जिस समितिको सौंपा था उसका निर्माण बहुत प्रभावशाली व्यक्तियोंसे मिलकर हुआ था। संसदके दोनों