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मुस्लिम संघके मानपत्रका जवाब

भवनोंके सदस्योंने मददका जोरदार और पक्का वादा किया; उन्हें कोई शक नहीं था कि पक्षकी माँग नरम है और रुख समझौतेका है। यद्यपि अध्यादेश जब पेश हुआ था तब वह सारे विरोधोंकी परवाह किये बिना तेजीसे पास कर लिया गया था, तथापि लोगोंने बाहर से हस्तक्षेप कराने का प्रयत्न नहीं किया। उन्होंने सही रास्ता अपनाया और न्यायकी विजय हुई। समितिने जो काम किया उससे उन्हें बड़ी-बड़ी आशाएँ हो गई थीं। लन्दनमें जनमतके मुखपत्र 'टाइम्स' ने इस पक्षकी चर्चा के लिए स्तम्भ खोल रखे थे, परिस्थितिके विस्तृत स्पष्टीकरण और समझ लिये जानेके बाद सदा एक ही उत्तर मिलता था कि ठीक ढंगसे सोचनेवाले किसी भी व्यक्तिको रायमें उनकी शिकायत उचित, नरम और तर्कसंगत है। इंग्लैंड छोड़कर आते समय तक उन्हें प्रबल आशा हो गई थी कि उनके साथ न्याय किया जायेगा; और कुछ दिनोंके बाद जब वे मदीरा पहुँचे, उन्हें इस आशयका तार मिला कि अध्यादेश नामंजूर कर दिया गया है। प्रतिनिधियोंने श्रोताओंसे कहा कि वे नागरिकों की हैसियतसे अपने सारे उत्तरदायित्वोंका निर्वाह करें; उन्हें ब्रिटिश न्यायसे पूरी आशा है। संघर्ष अभी प्रारम्भ ही हुआ है, किन्तु भविष्यके प्रति वे निराश नहीं हैं।

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मर्क्युरी, ४-१-१९०७
 

२९६. मुस्लिम संघके मानपत्रका जवाब

श्री गांधी और श्री हाजी वजीर अलीको मानपत्र देनेके लिए डर्बनमें ३ जनवरी १९०७ को मुस्लिम संघ (मोहम्मडन असोसिएशन) की एक बहुत बड़ी सभा हुई थी। सभाके अध्यक्ष-पदपर श्री उस्मान मुहम्मद अफेन्दी थे। मानपत्रके जवाब में गांधीजीने कहा :

[डर्बन
जनवरी ३, १९०७]

हाल में बहुतसे संघोंकी स्थापना हुई है। वे चाहें तो समाजकी बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। इन संघोंके चालकोंको संघोंके अधिकारियोंकी तरह नहीं, सेवककी तरह बरतना चाहिए। और ऐसा होनेपर ही सच्ची सेवा हो सकती है। इसके अतिरिक्त यदि ये विविध संघ आपस में सहयोग करें तो हममें बहुत ही शक्ति ला सकते हैं। दूसरे, श्री पॉलने शिक्षाके सम्बन्धमें जो संकेत किया है वह वास्तवमें ध्यान देने योग्य है। उसमें फीनिक्सकी जमीनकी बाबत कहा गया है। उसके सम्बन्धमें मैं बड़ी खुशीके साथ बतलाना चाहता हूँ कि यह जमीन मेरी नहीं, कौमकी ही है, ऐसा मैं मानता हूँ। मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि भारतमें हिन्दू-मुसलमानोंके बीच फूट डालने के लिए सरकारी पक्ष द्वारा प्रयत्न किये जाते हैं। वे हमें एक-दूसरेसे अलग देखना चाहते हैं। क्योंकि उनकी मान्यता है कि ऐसा होनेपर ही अंग्रेजी राज्य भारतमें दीर्घकाल तक टिकाया जा सकता है। आज 'ऐडवर्टाइजर' में एक तार है। उस तारको हम कदापि सत्य नहीं मान सकते। यह तार करनेवाली तथा इस प्रकारकी सभाएँ करानेवाली सरकार ही है। हमारी जीतका सच्चा और मुख्य कारण जाननेकी बहुतेरोंकी इच्छा है। वह कारण तो यही है कि मैं और श्री अली दोनों एक थे। हमारे बीच कभी भी