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३०२. छगनलाल गांधीके नाम पत्रका एक अंश[१]

[जोहानिसबर्ग,
जनवरी ५, १९०७ के लगभग]

तुम्हें जो हिसाबपत्रक भेजे गये हैं उनमें उपर्युक्त रकमें जमा दिखाई गई होंगी।

फोक्सरस्टवाले श्री भाभाका कहना है कि तुम उनके नाम उधारपुर्जा भेजा करते हो। उन्होंने विज्ञापनका पैसा दे दिया है। वह यहाँ जमा भी है।

कल्याणदास यहाँ भी अभी 'इंडियन ओपिनियन' का चन्दा उगाहनेका काम करता है। कई ग्राहकोंकी शिकायत है कि उन्हें 'ओपिनियन' नियमित नहीं मिलता। साथके एक-दो अखबारोंपर ही कागजका लपेटन था। तुम देखोगे कि देसाईकी टिकटोंपर मुहर नहीं है। इन टिकटोंको उखाड़कर काममें लाना।[२] कल्याणदासका अनुमान है कि कोई लापरवाहीसे लपेटन चिपकाता होगा। उसके उखाड़नेसे कागज बेकार जाता होगा। इस विषयमें श्री वेस्टको भी लिख रहा हूँ। हमें बहुत सावधानी रखनी चाहिए। ऐसा लगता है कि लपेटन चढ़ानेका काम हो तब निगरानी रखना जरूरी है। इस सम्बन्धमें सबसे बात करना।

लन्दनकी चिट्ठीके बारेमें लिखनेवाला हूँ। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को भी लिख रहा हूँ। रायटर के साथ तीन महीनेका इकरार है, इसलिए तीन महीने बाद हम दूसरी व्यवस्था कर सकेंगे। उसकी तजवीज आजसे कर रहा हूँ।

मनियाको[३] मुझे लिखने के लिए कहना। उसे क्या-क्या पढ़नेको देते हो, सो लिखना। मैंने बीनकी सामग्री भेजी है। वह पर्याप्त थी या नहीं सूचित करना। न्यायमूर्ति अमीर अलीकी पुस्तकके अनुवादके बारेमें कोई ख़बर मिली हो तो वे कागज मुझे भेजना।[४]

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ ६०७१) से।
  1. इस पत्रके तीन कागजों में से पहला खो गया है। फिर भी पत्रकी सामग्रीसे मालूम होता है कि वह फीनिक्सके पतेपर श्री छगननलाल गांधीके नाम है। पत्रके अन्तमें न्यायमूर्ति अमीर अलीकी पुस्तकका उल्लेख किया गया है। इससे मालूम होता है कि वह ५ जनवरीके आसपास लिखा गया होगा।
  2. स्पष्ट है कि श्री देसाईकी प्रतिका टिकट लगा हुआ पैकेट दूसरे किसीके टिकट लगे हुए लपेटनमें लिपटा हुआ था।
  3. मणिलाल, गांधीजीके द्वितीय पुत्र।
  4. यह उल्लेख सम्भवतः प्रकाशककी अनुमतिके सम्बन्धमें होगा, जिसकी प्रतीक्षा थी। देखिए पिछला शीर्षक।