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३०३. छगनलाल गांधीके नाम पत्रका एक अंश[१]

[जोहानिसबर्ग
जनवरी ५, १९०७ के लगभग]

[चि॰ छगनलाल,]

तुमने वसूली के लिए ग्राहकोंकी जो सूची भेजी है उसमें श्री के॰ एम॰ कागदी, बॉक्स २९६ का नाम देखा। मुझे याद है कि मैंने यह नाम तुम्हारे पास भेजा है। किन्तु उनका कहना है कि उन्हें आजतक एक भी प्रति नहीं मिली। वे अपनी डाकपेटी रोजाना देखते हैं, किन्तु उसमें 'ओपिनियन' कभी नहीं मिलता। क्या इस सम्बन्धमें छानबीन करोगे? यदि तुम अखबार भेजते रहे हो तब तो चन्दा लेना आसान है। यदि न भेजा हो तो इस रकमको खारिज करना होगा। यदि अखबार पहले न भेजा हो तो भी इस पत्रकी तारीखसे भेजना शुरू कर सकते हो। तुमने जो छपी हुई सूची भेजी है उसे मैं देख चुका हूँ। किन्तु यह नाम मैंने पहले नहीं देखा।

मणिलालको जहाँतक बन सके अंग्रेजी डेस्कसे न उठानेकी कोशिश करनी चाहिए। उसे नियमित तालीम देना जरूरी है। उसके बारेमें वेस्टने जो दलील दी है उसमें बहुत बल है।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ६०८५) से।
 

३०४. अधीक्षक अलेक्ज़ेंडर

डर्बनके आजतक के [पुलिस] अधीक्षक श्री अलेक्ज़ेंडर[२] अपने पदसे निवृत्त हो गये हैं। उनकी उत्तम सेवाओंके प्रति आदर दिखाने के लिए डर्बनमें उनका बहुत सम्मान किया गया है। उन्होंने भारतीयोंपर बहुत ही कृपा-दृष्टि रखी है। डर्बनका भारतीय समाज उनकी भावनाको समझता है और हमें मालूम हुआ है कि अपना आदर व्यक्त करनेके लिए उनको मानपत्र आदि देने का विचार कर रहा है। हमारी राय है कि इस काममें बिलकुल सुस्ती न करके तुरन्त निपटा दिया जाये। हम आशा करते हैं कि श्री डोनोवन, जो श्री अलेक्जेन्डरके स्थानपर नियुक्त हुए हैं, इस परम्पराको निभायेंगे और शुद्ध न्याय देंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५–१–१९०७
  1. यह पत्र अपूर्ण है। उसपर नाम और तारीख दोनों नहीं हैं। फिर भी पत्रके विषयसे स्पष्ट है कि वह छगनलाल गांधीको लिखा गया था। उस समय फीनिक्समें बकाया वसूलीका काम बड़ी तत्परता से किया जा रहा था। बकाया वसूली और मणिलालके अध्ययनका उल्लेख इसमें तथा पिछले पत्र में भी है।
  2. जब १८९७ में भीड़ने गांधीजीपर हमला कर दिया था तब इन्हीं अधिकारीने गांधीजीकी रक्षा की थी। देखिए खण्ड २, पृष्ठ २२७ और आत्मकथा भाग ३, अध्याय ३ भी।