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३१०. जापान और अमेरिका

जापान और अमेरिकाके बीच भी खींचातानी चल रही है। केलीफोर्नियामें जापानियोंकी बहुत-बड़ी आबादी है। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्तासे बहुत तरक्की की है। बहुतसे जापानी लड़के अमेरिकी पाठशालाओं में पढ़ते हैं। यह वहाँके गोरोंको बर्दाश्त नहीं होता। इस विषय में जापान भारी संघर्ष कर रहा है। अभी उसका फैसला नहीं हुआ। राष्ट्रपति रूजवेल्टकी हालत विषम हो गई है। एक ओर जापान-जैसी वीर प्रजाका अपमान हो रहा है और दूसरी ओर गोरे जिन्हें इस बातकी परवाह नहीं कि अमेरिकाको लड़ाईमें फँसना पड़ेगा, राष्ट्रपति रूजवेल्टकी सलाह न मानकर जापानी लड़कोंको पाठशालाओंमें प्रविष्ट नहीं होने दे रहे हैं। सांप-छछूंदरकी गति हो गई है। अमेरिका लड़ सके, ऐसी भी स्थिति नहीं है। उसकी नौसेनाकी तुलना में जापानकी नौसेना बहुत ही बड़ी है, और उस नौसेनाने तो अभी-अभी ही केसरिया बाना पहना था।

ऐसे अवसरपर इंग्लैंडके लिए भी बहुत विचार करनेकी बात है। एक ओर जापान उसका दोस्त और दूसरी ओर अमेरिका उसका चचेरा भाई। किसका पक्ष ले? कहा जाता है कि इंग्लैंड यथेष्ट दृढ़तासे मध्यस्थता करे तभी लड़ाई होनेसे रुक सकती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-१-१९०७
 

३११. जोहानिसबर्गको चिट्ठी[१]
श्री क्विनका भाषण

ट्रान्सवालमें नई संसद् बननेवाली है इसलिए आजकल नये चुनावकी धूमधाम मची है। श्री क्विन संसदमें जानेका प्रयत्न कर रहे हैं। मतदाताओंके समक्ष अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा है :

कुछ समय पूर्व विधान परिषद् ने एशियाई अध्यादेश पास किया था। उससे बिना अनुमतिपत्रके आनेवाले एशियाइयोंको ट्रान्सवालमें आने में बहुत कठिनाई हो सकती है। जिन लोगोंने उस कानूनको स्वीकार किया उनके मनमें एशियाइयोंके प्रति कोई द्वेष नहीं था। यह कहने में कोई अर्थ नहीं है कि वे ब्रिटिश प्रजा हैं। गोरी चमड़ीवाले अनेक ऐसे लोग ब्रिटिश प्रजा हैं जिनसे मैं सम्बन्ध रखना नहीं चाहता। हम जो उनका विरोध करते हैं उसका उद्देश्य अपनी रक्षा करना है। इस सम्बन्धमें हमारे विचार भी चेम्बरलेनके व्यक्त किये गये विचारोंसे मिलते-जुलते हैं। यानी एशियाई लोग जो गोरोंकी अपेक्षा दसगुना कम खर्चमें अपना गुजारा कर सकते हैं, यदि बड़े पैमानेपर ट्रान्सवालमें
  1. ये संवादपत्र "जोहानिसबर्ग सम्वाददाता" के नामपर इंडियन ओपिनियन में नियमित रूपसे प्रकाशित होते थे।