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भेंट:'मॉर्निंग लीडर' को

पास सम्बन्धी कठिनाइयाँ

उस अध्यादेशके कारण केवल व्यापारियोंके लिए ही नहीं, आज ट्रान्सवालमें रहनेवाले हर भारतीयके लिए (काफिरोंकी तरह) पंजीयन कराना और पास रखना अनिवार्य है। इस पासको पंजीयन प्रमाणपत्रकी मधुर संज्ञा दी गई है। यह बता देना आवश्यक है कि यह कदम बावजूद इस बातके उठाया गया है कि इस देशमें भारतीय पहले ही अनुमतिपत्र ले चुके हैं, जिनसे उन्हें यहाँके निवासका अधिकार प्राप्त होता है और उनके पास वे पंजीयन प्रमाणपत्र भी हैं जिन्हें उनमें से हरएकने ३ पौंडी शुल्क देकर लिया है।

जब ग्रेट ब्रिटेनने ट्रान्सवालपर अधिकार किया तब लॉर्ड मिलनरकी सलाहपर भारतीयोंने अपने बोअर पंजीयनपत्रों की जगह अंग्रेजी पंजीयनपत्र लिये और अपने पंजीयनपत्रोंपर अंगूठेके निशान देने तक की बात मान ली। और, जिस व्यक्तिके पास यह पंजीयनपत्र होता था उसपर उसकी उम्र, ऊँचाई और कुटुम्बके अन्य व्यक्तियोंकी तफसील भी होती थी। वास्तवमें वह अभिज्ञानपत्र ही होता था।

'अनधिकृत' आव्रजन

और अब नया अध्यादेश फिरसे तीसरी बार पंजीयनका विधान करता है।

कारण यह दिया गया है कि ट्रान्सवालमें बड़े पैमानेपर भारतीयोंने अनधिकृत प्रवेश किया है, और नये अध्यादेशके माध्यमसे यह मालूम करनेका इरादा है कि वे कौन हैं। किन्तु इस उद्देश्यकी पूर्ति इस समय प्राप्त पंजीयन प्रमाणपत्रोंकी जाँचसे भी उतनी ही अच्छी तरह हो सकती थी। वैसे सच तो यह है कि भारतीय सरकारके इस दावेका दृढ़तापूर्वक खण्डन करते हैं कि बड़े पैमानेपर कोई अनधिकृत प्रवेश हो रहा है और उन्होंने इस प्रश्नकी जाँचके लिए एक आयोगकी नियुक्तिकी माँग की है।

पुरानी पद्धतिके मुकाबिले इस संशोधक कानूनमें बहुत ज्यादा सख्त शिनाख्त की जायेगी। जैसा कि सहायक उपनिवेश-सचिव (श्री कर्टिस) ने कहा, हर भारतीयको, चाहे उसकी सामाजिक स्थिति जो हो, अपने प्रमाणपत्रपर (केवल अंगूठेकी छापकी जगह) दसों अँगुलियोंकी छाप देनी पड़ेगी। पंजीयन न करानेकी सजा बहुत कठोर होगी। केवल बालिग पुरुषोंका ही नहीं, ट्रान्सवालमें रहनेवाले वालदैनके बच्चों और दुधमुँहे शिशुओं तक का पंजीयन कराना पड़ेगा।

रंग-विद्वेष

ट्रान्सवालमें रंगके प्रति जो पूर्वग्रह है उसे भारतीय समाज मान्य करता है और इसलिए उसने ब्रिटिश भारतीय आव्रजनपर प्रतिबन्धका सिद्धान्त स्वीकार कर लिया है--किन्तु ऐसी शर्तोपर जो अपमानजनक न हों और जिनसे उनकी स्वतंत्रता में बाधा न आती हो जो देशमें बस ही चुके हैं। यह बात नेटाल या केपके ढंगका कानून बनाकर आसानीसे की जा सकती है। यह कानून ऐसा होना चाहिए जो सामान्य हो और सबपर लागू हो सके। अबतक बड़ी सरकारने सारे स्वायत्तशासन-प्राप्त उपनिवेशों में वर्ग-विशेषके लिए निर्मित विधानपर निषेधाधिकारका प्रयोग किया है। नेटालने जब विशेषतः एशियाइयोंको प्रभावित करनेवाला कानून बनाना चाहा तब श्री चेम्बरलेनने उसे नामंजूर किया; और हम यहाँ लॉर्ड एलगिनको संशोधक कानूनपर शाही स्वीकृति न देनेके तथा भारतीयोंके बहुत बड़े पैमानेपर प्रवेश