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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्बन्धी दोषारोपणकी जाँचके लिए आयोगकी नियुक्ति करनेपर राजी करनेका प्रयत्न करनेके लिए आये हैं।

श्री गांधी कहते हैं कि भारतीय इस मामलेसे बहुत प्रक्षुब्ध हैं और झुकनेके बजाय जेल जानेको तैयार हैं।

[अंग्रेजीसे]
मॉर्निंग लीडर, २२-१०-१९०६

 

३. पत्र: 'टाइम्स' को '[१]

[लन्दन]
अक्तूबर २२, १९०६

सेवामें
सम्पादक
'टाइम्स'
[लन्दन]
महोदय,

ट्रान्सवाल एशियाई कानून संशोधन अध्यादेशके बारेमें साम्राज्यीय अधिकारियोंसे मिलनेके लिए ट्रान्सवालसे जो ब्रिटिश भारतीय शिष्टमण्डल आया है उसके बारेमें आपके जोहानिसबर्ग संवाददाताका तार मैंने आपके आजके अंकमें देखा।

मुझे भरोसा है कि आप न्यायकी दृष्टिसे अपने संवाददाताकी कतिपय गलतबयानियोंको सुधारनेकी मुझे इजाजत देंगे। उनका कथन है: "वर्तमान अध्यादेशमें सारे एशियाइयोंके सम्पूर्ण पंजीयनकी ऐसी व्यवस्था है कि छद्म-परिचय, जिसमें एशियाई निष्णात है, असम्भव हो जायेगा।" हम इस बातसे इनकार करते हैं कि ऐसा कोई जाल किया गया है और हम दृढ़तापूर्वक यह कहनेकी धृष्टता करते हैं कि जो पंजीयन प्रमाणपत्र इस समय भारतीयोंके पास हैं उनमें जालको पूरी तरह रोकनेकी व्यवस्था है। इन प्रमाणपत्रोंपर प्राप्तकर्ताओं और उनकी पत्नियोंके नाम, बच्चोंकी संख्या, उम्र, ऊँचाई तथा उनके अंगूठोंके निशान होते हैं। छद्म-परिचयका जब कभी कोई प्रयत्न किया गया है, तभी दोषीके विरुद्ध तत्परताके साथ आवश्यक कार्रवाई की गई है।

आपके संवाददाताका कथन है कि वर्तमान अध्यादेश बसे-बसाये एशियाइयोंको स्वामित्व के पूरे अधिकार और अपेक्षाकृत अधिक राहत देगा। उन्हें निवासका पूरा अधिकार पहलेसे ही प्राप्त है, बशर्ते कि नया कानून बनाकर वह छीन न लिया जाये। उनके पास ट्रान्सवाल उपनिवेशमें दाखिल होने और बने रहनेका अधिकार देनेवाले अनुमतिपत्र और ऊपर कहे गये

  1. यह पत्र "सार रूपमें" २५-१०-१९०६ के टाइम्समें प्रकाशित हुआ था और २६-१०-१९०६ के इंडिया तथा २४-११-१९०६ के इंडियन ओपिनियन में पूरा उद्धृत किया गया था।