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नीतिधर्म अथवा धर्मनीति—२

जिसकी पूर्तिका प्रयत्न करना ही अनीति है। दूसरे प्रकारकी इच्छाएँ वे होती हैं जिनके कारण हम हमेशा भले बनने तथा परहित साधनेकी ओर रुझान रखते हैं। हम कितनी ही भलाई क्यों न करें, हमें उसका कभी गुमान नहीं करना चाहिए; और न उसकी कीमत आँकनी चाहिए, बल्कि निरन्तर यह इच्छा करते रहना चाहिए कि हम और अधिक अच्छे बनें, और अधिक भलाई करें। ऐसी इच्छाओंकी पूर्तिके लिए किये गये आचरण एवं व्यवहारका नाम ही सच्ची नीति है।

हमारे पास घरबार न हो तो इसमें शरमाने जैसी कोई बात नहीं होती। परन्तु घर-बार हो और उसका दुरुपयोग करें, धन्धा मिले और उसमें बदमाशी करें, तो हम नीतिके मार्ग से च्युत होते हैं। जो हमारे लिए कर्त्तव्य है उसको करने में ही नीति निहित है। इस प्रकार नीतिकी आवश्यकता है, यह बात हम कुछ उदाहरणों द्वारा साबित कर सकते हैं। जिस समाज या कुटुम्बमें अनीतिके बीज—जैसे कि फूट, असत्य आदि दीख पड़े हैं, वह समाज या कुटुम्ब अपने आप नष्ट हो गया है। इसके अलावा, यदि धन्धे रोजगारका उदाहरण लें तो उसमें हमें यह कहने वाला एक भी मनुष्य नहीं मिलेगा कि उसे सत्यका पालन नहीं करना है। न्याय और भलाईका असर तो बाहरसे नहीं हो सकता। वह हमारे भीतर ही समाया हुआ है। चार सौ वर्ष पहले यूरोपमें अन्याय और असत्यका बहुत बोलबाला था। उस वक्त ऐसी हालत थी कि लोग घड़ी-भर भी शान्तिपूर्वक नहीं रह सकते थे। इसका कारण यह था कि लोगों में नीति नहीं थी। नीतिके समस्त नियमोंका दोहन किया जाये तो हम देखेंगे कि मानव-जातिके कल्याण के लिए प्रयास करना ही उत्कृष्ट नीति है। इस कुंजीसे नीति रूपी मंजूषाको खोलकर देखनेपर नैतिकताके अन्य नियम हमें उसमें मिल जायेंगे।

इन निबन्धोंके नीचे हम गुजराती या उर्दू कवियोंकी चुनी हुई ऐसी रचनाएँ, जो नैतिकता के नियमोंसे सम्बन्धित हैं, देते रहेंगे। वह इस आशासे कि उनका लाभ हमारे सारे पाठक लेंगे और उन्हें कण्ठस्थ भी कर लेंगे। हम श्री मलबारीकी[१] पुस्तक, "आदमी अने तेनी दुनिया"[२] से इसका प्रारम्भ करते हैं।

जमाना नापायदार[३]

किउ[४] मुश्ताक होते तु[५] फिरता बिरादर?
अये दाना,[६] तवाना[७] होनार तमें हाजर[८]
चले गये बड़े फिलसुफां[९], पेहेलवानां,
अरे दोस्त दानां, तुं होगा दिवाना।
न दाना की दानाई हरदम टकेगी[१०]
न नेकांबी[११] हरदम गुजारेंगे नेकी
किसे यारी हरदम न देता जमाना;
अरे दोस्त दाना तुं होगा दिवाना।

  1. बहरामजी मेहरवानाजी, मलबारी, (१८५३-१९१२) : लेखक, पत्रकार, समाज-सुधारक तथा गुजराती और उर्दू शैलीके प्रथम पारसी कवि।
  2. कविकी फुटकर कविताओंका संग्रह; फोर्ट प्रिंटिंग प्रेस, बम्बई, १८९८।
  3. मूल पुस्तकसे उद्धृत।
  4. क्यों,
  5. तू,
  6. बुद्धिमान,
  7. बलवान,
  8. होना है तुझे हाजिर,
  9. तत्त्ववेत्ता,
  10. टिकेगी,
  11. नेक भी।