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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कूवत[१] पीलतनका[२] तुं लेके फिरेगा;
जमाना अचानक शिकस्त[३] आके देगा;
अकलकी नकल बेअकल बस बनाना;
अरे दोस्त दाना, तुं होगा दिवाना।
गुजारे अवल बचगीकी[४] बादशाही
होनारत दरद[५] देवे जमकी गवाही
बेताकत[६], किस राह उठाना सोलाना[७];
अरे दोस्त दाना, तुं होगा दिवाना।
न दुनियामें तेरा हुआ, को[८] न होगा;
न तु तेरा होवे होगा न व रोगा[९]
सिवा पाक दीदार[१०] सब कोई बेगाना;
अरे दोस्त दाना, तुं होगा दिवाना

—बहरामजी मलबारी

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-१-१९०७

 

३१३. अमीरकी अमीरी[११]

अफगानिस्तानके अमीरने भारतमें अपनी अमीरी थोड़े ही दिनोंमें दिखा दी है। यह रायटरके दो तारोंसे साबित होता है। दिल्लीमें सैनिकोंकी पंक्तियोंके मध्य से गुजरते हुए उन्हें वर्षा होनेके कारण छतरी दी गई। किन्तु पंक्ति में खड़े हुए सभी सैनिक भीग रहे थे, इसलिए उन्होंने भी भीगना ही पसन्द किया और छतरी लेनेसे इनकार कर दिया।

दूसरा तार यह है कि दिल्ली में माननीय अमीरको दावत देनेके लिए मुसलमान भाइयोंने सौ गायें मारने का इरादा किया था। अमीरने सुझाया कि ऐसा करनेसे हिन्दुओंकी भावनाको ठेस लग सकती है; और इसलिए उन्होंने गायके बदले बकरे मारनेकी सलाह दी। लोगोंने उस सलाहको स्वीकार किया। कहा जाता है कि अमीरके इस कार्यसे समस्त भारतको आनन्द और आश्चर्य हुआ है। वे दूसरोंकी भावनाका इतना खयाल रखेंगे, इसकी किसीको कल्पना नहीं थी।

माननीय अमीरके दोनों कार्योंसे पता चलता है कि उनका मन दयालु और सरल होना चाहिए। दोनोंमें उन्होंने जनताका खयाल रखा है। दोनों कार्योंके द्वारा उन्होंने पश्चिमके

  1. ताकत,
  2. हाथीका शरीर,
  3. पराजय,
  4. बचपनकी,
  5. भविष्यकी पीड़ा,
  6. बेताफत,
  7. सुलाना,
  8. कोई,
  9. रोयेगा,
  10. परमेश्वर।
  11. इस लेखका तात्कालिक कारण ऐंगस हैमिल्टन द्वारा रिव्यू ऑफ रिव्यूज़में अफगानिस्तानके अमीरपर लिखा गया एक लेख प्रतीत होता है। लेख "अन्य बातोंमें एक प्रशंसात्मक चरित्रांकन" था, लेकिन उसमें अमीरको "बर्बर" और क्रूर बताया गया था।