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स्त्री-शिक्षा

राज्योंके सामने सबक ग्रहण करने योग्य उदाहरण प्रस्तुत किया है। तार देनेवाले हमें यह नहीं बता सकते कि ऐसे ही और कितने काम उन्होंने किये हैं। किन्तु हम आसानीसे कल्पना कर सकते हैं कि अमीर हबीबुल्लामें अपने नामके[१] अनुरूप ही गुण भी हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१-१९०७
 

३१४. परवानेकी तकलीफ

लेडीस्मिथ, टोंगाट वगैरह जगहोंसे [भारतीय] व्यापारियोंने परवानेके लिए अर्जियाँ दी थीं। परवाना अधिकारीने उन्हें खारिज करके परवाने देने से इनकार कर दिया है। इसका कारण कहीं स्वच्छता का अभाव दिखाया गया है और कहीं यह बताया गया है कि बहीखाते साफ नहीं हैं, और कहीं कोई भी कारण नहीं बताया। इससे व्यापारी लोग परेशान हैं कि यदि परवाना नहीं मिलेगा तो वे क्या करेंगे? इस विषयमें और भी पक्की जानकारी मिलनेपर क्या करना है, इस सम्बन्धमें अगले सप्ताह विचार करूँगा।[२]

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१-१९०७
 

३१५. स्त्री-शिक्षा

स्त्री-शिक्षा में भारत बहुत पिछड़ा हुआ है, यह हमें स्वीकार करना पड़ता है। इस स्वीकृतिमें हमारा हेतु यह कहनेका नहीं है कि भारतीय स्त्रियाँ अपना फर्ज नहीं बजातीं। हमारी तो यह मान्यता है कि सम्पूर्ण बातोंका विचार करते हुए जैसे भारतीय पुरुषकी तुलनामें दुनियाके किसी भी वर्गका पुरुष नहीं पहुँच पाता, उसी प्रकार हमारी यह भी मान्यता है कि भारतीय नारीके स्तरको पहुँच पानेवाली नारियाँ संसारकी अन्य स्त्रियोंमें अभी पैदा ही नहीं हुईं। परन्तु यह सब भारतकी वर्तमान निर्बल, अधम और कंगाल परिस्थितियोंमें ज्यादा समय तक निभ सके ऐसा नहीं है। यह जमाना ऐसा है कि यदि कोई एक ही स्थितिमें बना रहना चाहे, तो नहीं हो सकता। जो आगे बढ़ना नहीं चाहते या नहीं बढ़ते, उन्हें पिछड़ना ही होगा। यदि यह विचार सत्य है तो हम देख सकेंगे कि भारतीय पुरुषोंने भारतीय स्त्रियोंको बहुत पिछड़ा हुआ रखा है। आजकल सुधारका दम्भ करनेवाले अथवा खा-पीकर सुखी रहनेवाले बहुतेरे भारतीय—भले ही वे हिन्दू हों या मुसलमान, पारसी हों या ईसाई—स्त्रियोंको या तो खिलौने के समान रहने देते हैं, या अपने विषय-भोगके लिए मनमाने ढंगसे रखते हैं। परिणाम यह होता है कि स्वयं दुर्बल होते हैं और वैसे ही रहते हैं, तथा दुर्बल प्रजोत्पत्तिमें सहायक बनकर ईश्वर या खुदाको जो मंजूर होगा सो होगा—ऐसा कहकर अधर्ममय जीवन बिताते

  1. हबीबुल्ला अर्थात् 'ईश्वरका प्यारा'।
  2. देखिए "नेटालका परवाना कानून", पृष्ठ ३१०-१३।