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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं। यदि यों ही निरन्तर चलता रहा तो भारतको अंग्रेज सरकारसे जितना मिलना चाहिए उतना पानेपर भी भारत अधम दशा ही में बना रहेगा। अच्छी तरहका रहन-सहन रखनेवाले सब देशों में स्त्री-पुरुषोंकी गणना समान होती है। यदि भारतमें ५० प्रतिशत मानव प्राणी हमेशा अज्ञान दशामें और खिलौने बनकर रहें तो उससे भारतकी पूंजीमें कितना घाटा होगा, यह सहज ही समझा जा सकता है।

उपर्युक्त विचार फ्रांसके विद्वान श्री लॉक्सिने फ्रांस बालिकाओंको जो प्रवचन दिया था उसे पढ़कर उत्पन्न हुए हैं। जैसी दशा भारतीय स्त्रियोंकी आज है वैसी ही फांसकी स्त्रियोंकी कुछ ही वर्ष पूर्व थी। अब फांसकी जनता जाग गई है और अपने अद्धगको निकम्मा नहीं रहने देना चाहती। श्री लॉबिसके भाषणका सारांश हम नीचे दे रहे हैं।

बालाओ! आपको सीखने के लिए तो बहुत है। सुई और कतरनीका प्रयोग आपका काम है। घरको साफ-स्वच्छ किस प्रकार रखा जाये यह आपको जानना है। घरकी साज-सज्जा ठीक होगी तो उसकी बात बाहर भी फैलेगी और घरके समान ही गाँव भी बन जायेगा। पैसेका क्या उपयोग किया जाये यह भी आपको सीखना है। आप एक दिन माता बनेंगी। आपपर आपके बच्चोंकी जिम्मेदारी होगी। केवल पढ़ना-लिखना-भर सीख लेना आपके लिए बस नहीं है। अपने मनका संस्कार करना जरूरी है, क्योंकि बच्चोंको सच्ची शिक्षा देनेवाली तो उनकी माता ही होती है। जैसे आपको अपना मन विकसित करना है उसी प्रकार आपके चारों ओर क्या हो रहा है, आपके देशके अलावा अन्य कौन-कौनसे देश हैं, उन देशोंके लोग क्या करते हैं, वे आपसे अच्छे हैं या बुरे—यह भी आपको जानना चाहिए। इतिहास और भूगोल आपको इसीलिए सिखाये जाते हैं। लड़कोंके लिए जिस प्रकारकी पाठशालाएँ हैं वैसी ही लड़कियोंके लिए भी होनी चाहिए।

श्री लॉक्सिने बड़े ही मीठे शब्दोंमें पेरिसके बड़े स्कूलकी बालिकाओंके समक्ष इस प्रकार प्रवचन दिया और उन्हें सहज रूपसे भान कराया कि माता-पिताके रूपमें उनके क्या कर्त्तव्य हैं। दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय आबादीमें लड़कियाँ तथा स्त्रियाँ एक बड़ी संख्या में हैं। हमारा निश्चित मत है कि इन दोनोंको अच्छी शिक्षाकी बड़ी ही जरूरत है। वह शिक्षा यद्यपि उन्हें सहज ही दी जा सकती है परन्तु यह तो तब हो सकता है जब हम खिलवाड़ करना छोड़कर अपने कर्तव्यको समझें। शिक्षा देते हुए भी हमें यह सोचना चाहिए कि वह किस हेतुसे दी जानी चाहिए। यदि स्वार्थके हेतुसे देंगे तो उससे कोई सार नहीं निकलेगा। वह तो केवल वेश बदलने जैसा होगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१-१९०७