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३१६. जापानकी चाल[१]

जापानसे सभीको बहुत कुछ सीखना है। भारतीय जनताको तो विशेष सीखना है। अमेरिकाके कुछ हिस्सों में जहाँ जापानी बालकोंको पाठशालाओं में पढ़ने नहीं दिया जाता वहाँ आज भी खींचातानी चलती रहती है। अंग्रेजी अखबारोंके समाचारोंसे पता चलता है कि यह खींचातानी अभी समाप्त नहीं हुई। अमेरिकाके लोग अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं हैं और न यही लगता है कि जापान अपना मान भंग होने देगा। इसपर से कुछ लेखकोंका अनुमान है कि कुछ ही समयमें जापान तथा अमेरिकामें मुठभेड़ हो जायेगी। यदि ऐसा हो तो कुछ लोगोंकी यह भी मान्यता है कि जापान अधिक बलवान है। बहुत-कुछ अंग्रेज जनतापर निर्भर है। जापान तथा अंग्रेजोंके बीच इस समय मैत्री भाव है। अंग्रेज सरकार मध्यस्थ बनकर शान्ति कायम रखे, तभी यह रक्तकी नदी बहनेसे रुक सकेगी, ऐसा लगता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१-१९०७
 

३१७. नीतिधर्म अथवा धर्मनीति
नीतियुक्त काम कौन-सा है?

क्या यह कहा जा सकता है कि अमुक काम नैतिक है? इस प्रश्नका हेतु नैतिक और अनैतिक कामका मुकाबला करना नहीं, बल्कि उन बहुत-से कार्योंके विषय में विचार करना है कि जिनके खिलाफ कुछ कहा नहीं जाता और जिन्हें कुछ लोग नैतिक मान लेते हैं। हमारे अधिकतर कामोंमें विशेष रूपसे नीतिका समावेश नहीं होता। प्रायः हम लोग सामान्य रीति-रिवाजके मुताबिक चलते हैं। बहुधा ऐसी रूढ़ियोंके अनुसार चलना जरूरी होता है। यदि उन नियमोंका पालन न किया जाये तो अंधाधुंधी मच जायेगी और दुनियाका कारोबार बन्द हो जायेगा। पर इस प्रकार रूढ़ि-निर्वाहको नीतिका नाम देना उचित नहीं माना जा सकता।

नैतिक काम तो अपनी ओरसे यानी स्वयंस्फूर्त होना चाहिए। जहाँतक हम यन्त्रके पुर्जें के रूपमें काम करते हैं वहाँतक हमारे काममें नीतिका समावेश नहीं होता। यन्त्रके पुर्जेके समान कार्य करना उचित है, और हम वैसा करते हैं, तो यह विचार नैतिक है; क्योंकि उसमें हम अपनी विवेक-बुद्धिका उपयोग करते हैं। यह यंत्रवत् काम और उस कामको करनेका विचार करना, दोनोंमें जो भेद है वह ध्यानमें रखने जैसा है। राजा किसीका अपराध माफ कर दे तो यह कार्य नैतिक हो सकता है; परन्तु राजाके किये हुए नैतिक कार्य में माफीकी चिट्ठी ले जाने वाले चपरासीका योग यंत्रवत् ही है। परन्तु यदि चपरासी चिट्ठी ले जानेका काम कर्तव्य समझकर करे, तो उसका यह कार्य भी नैतिक हो सकता है। जो मनुष्य अपनी बुद्धि

  1. देखिए "जापान और अमेरिका", पृष्ठ २९५।