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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
यह सही नहीं है कि इसके बाद छोटी-मोटी बातोंपर विचार हुआ और सभा बिना किसी निर्णयपर पहुँचे ही भंग हो गई। सभा तो तभी विसर्जित हुई जब उसने भारतीय समाजके सभी वर्गोंकी एक पूर्ण प्रतिनिधि समितिका निर्वाचन कर लिया, जो नेटाल भारतीय कांग्रेससे बातचीत करे। कांग्रेस के अध्यक्ष एवं मंत्रियोंसे मिलकर यह तय करनेके लिए कि समितिके विचार सुननेके लिए कांग्रेसको कौन-सी तिथि, स्थान और समय उपयुक्त होगा, मेरी नियुक्ति की गई। हमारी इच्छा या नीयत कांग्रेस अथवा यूरोपीय लोगों के खिलाफ काम करनेकी नहीं है, बल्कि यूरोपीय और भारतीय समाजके बीच अधिक सद्भाव पैदा करनेमें कांग्रेसके साथ मिलनेकी है।

हमें यह देखकर खुशी हुई कि डर्बनके प्रमुख हिन्दू उक्त समाचारपत्रमें छपे वक्तव्यका खण्डन करने के लिए रविवारको इकट्ठे हुए थे। इस सभा के सभापति श्री संघवीने कहा है कि भारतीय समाजके सभी वर्गोंमें पूर्ण मैत्री और एकता है और जाति, सम्प्रदाय या धर्मका कोई भेद नहीं है।

'ऐडवर्टाइजर' में उपर्युक्त मनगढन्त समाचार प्रकाशित करानेवालोंके अलावा भी यदि कोई ऐसे नौजवान भारतीय हों जिन्हें कांग्रेसके कार्य संचालनमें प्रमुख रूपसे हाथ बँटानेका मौका न मिलने की शिकायत हो तो उन्हें हम जोरदार शब्दोंमें सलाह देते हैं कि वे ऐसी किसी भी हलवलसे दूर रहें जो समाजके विभिन्न अंगोंमें आपसी फूट डालनेवाली हो।

हम नेटाल भारतीय कांग्रेसकी[१] उत्पत्तिके कारणोंपर विचार करें तो अच्छा हो। जब कतिपय यूरोपीय उपनिवेशियों द्वारा सारे भारतीय समाजपर आम हमला शुरू किया गया तब उसकी स्थापना हुई थी। कांग्रेस के ट्रस्टियोंमें दो हिन्दू हैं। उनमें से एक तमिल सज्जन हैं। और कांग्रेस के सदस्योंमें बीसियों हिन्दू और ईसाई हैं जो भारतके विभिन्न प्रान्तोंके निवासी हैं। इसके उद्देश्योंमें सबका समावेश होता है और यदि तमिल समाज के प्रति जो दिलचस्पी ली गई उसका कोई मूल्य हो तो सच बात तो यह है कि अपने अस्तित्वके प्रारम्भमें कुछ वर्षों तक कांग्रेस खास तौरसे इसी समाजसे सम्बन्धित मामलोंमें ज्यादा लगी रही थी। इस सिलसिले में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कांग्रेसके संरक्षण में ही नेटाल भारतीय शिक्षा-सभा उन्नत और समृद्ध हुई। इसके कार्यके लिए कांग्रेसका सभाभवन निःशुल्क अर्पित किया गया था। पुनः उपनिवेशी भारतीयोंके फायदेके लिए हीरक जयन्ती पुस्तकालयकी[२] स्थापना खास तौरसे कांग्रेस-कोषके बलपर ही सम्भव हुई। अगर आज कांग्रेसकी बैठकोंमें भारतीय व्यापारियों के सम्बन्धमें ही विशेष चर्चा होती है तो इसका सबब यह है कि वे ही सबसे ज्यादा खतरे में हैं। और उनकी उपेक्षा हुई या उन्होंने स्वयं अपनी उपेक्षा होने दी तो हानि किसकी होगी? निश्चय ही सारे भारतीय समाजकी; क्योंकि दुनिया भरमें वणिक-वर्ग ही ऐसा है जो अपने समाज अथवा राष्ट्रको द्रव्य और साथ ही व्यावहारिक बुद्धि भी प्रदान करता है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१-१९०७
  1. यह १८९४ में स्थापित की गई थी; देखिये खण्ड १, पृष्ठ १३०-५, २३५-४३ और खण्ड ३, पृष्ठ १०६-१९।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ११५।