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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ब्रिटिश भारतीय समाजने, जिसकी स्थिति आज बोअर शासनकालसे बेहद खराब है, इस बातका खण्डन किया है कि ट्रान्सवालमें एशियाई बड़े पैमानेपर आ रहे हैं।[१] समाजने बड़ी संख्या में भारतीयोंके इस तथाकथित प्रवेशकी जाँचकी माँग की है। हमारा दावा है कि ट्रान्सवालके १३,००० ब्रिटिश भारतीयोंमें से ज्यादातर लोगोंके पास बाकायदा अनुमतिपत्र और प्रमाणपत्र हैं। यदि कुछ लोगोंके पास आवश्यक दस्तावेज न हों तो शान्ति-रक्षा अध्यादेश उन्हें देशसे निकालनेके लिए काफी मजबूत और सख्त है। अक्सर ऐसे लोगोंपर सफलतापूर्वक कानूनी कार्रवाई की गई है।

इसलिए यह स्पष्ट है कि ब्रिटिश भारतीय समाज अनुचित आव्रजन अथवा अनुचित व्यापारिक स्पर्धा (के डर)[२] की बातको न्यायपूर्ण ढंगसे सुलझाने के लिए तैयार है; किन्तु उसका दावा है कि बिना वर्ग-भेदके सर्वसामान्य विनियमोंके अन्तर्गत आबाद भारतीयोंको साधारण नागरिकता के अधिकार, अर्थात् जमीन आदिके स्वामित्वकी स्वतन्त्रता, आवागमनकी स्वतन्त्रता तथा व्यापार करनेकी स्वतन्त्रता प्राप्त हो।

आपके, आदि,
[मो० क० गांधी
हा० व० अली ]

ट्रान्सवाल ब्रिटिश [भारतीय]
शिष्टमण्डल के सदस्य

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४३८५) से।

 

४. पत्र: एफ० मैकारनिसको[३]

होटल सेसिल
[लन्दन]
अक्तूबर २४, १९०६

प्रिय महोदय,

ट्रान्सवाल विधानपरिषद द्वारा स्वीकृत एशियाई कानून संशोधन अध्यादेशके बारेमें ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघने श्री हाजी वजीर अलीको और मुझे शिष्टमण्डलके रूपमें नियुक्त किया है, इसलिए हम यहाँ आये हुए हैं।

अध्यादेशके बारेमें हमारा इरादा अधिकारियों और उन प्रमुख सार्वजनिक नेताओंसे भी मिलनेका है, जिन्होंने दक्षिण आफ्रिकी मामलोंमें दिलचस्पी ली है। यदि आप कृपा करके

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २३१-३३।
  2. ये शब्द इंडिया में प्रकाशित पाठमें मिलते हैं।
  3. सचिवको टिप्पणी के अनुसार ऐसे ही पत्र पी० ए० मोल्टेनो, संसद सदस्य, सर चार्ल्स डिल्क, संसद-सदस्य और परममाननीय लॉर्ड स्टैनले ऑफ ऐल्डर्लेको भी भेजे गये थे।