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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोई अनुमतिपत्रके बिना आता हो तो उसे रोकना चाहिए और गोरोंको दिखा देना चाहिए कि वे जिस अत्याचारपर तुले हैं वह सर्वथा निरर्थक है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-२-१९०७
 

३३३. थियोडोर मॉरिसन

श्री थियोडोर मॉरिसनको, जो दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिके सदस्य हैं, मॉर्लेने भारत-परिषद् में स्थान दिया है। श्री मॉरिसन अलीगढ़ कॉलेजके आचार्य थे। कितनी ही बातों में उनके विचार अति उदार हैं। वे प्रतिष्ठित परिवारके व्यक्ति हैं। यह नियुक्ति श्री मॉर्लेका नया कदम है। आजतक नियुक्त किये गये सभी सदस्य आंग्ल-भारतीय अधिकारी थे। किन्तु श्री मॉरिसनको उस पंक्ति में नहीं खड़ा किया जा सकता। अर्थात्, मानना होगा कि श्री मॉर्लेने भारत-परिषद्के संविधानमें बड़ा परिवर्तन किया है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-२-१९०७
 

३३४. सर जेम्स फर्ग्युसन

तार आया है कि जमैकामें भूकम्प हुआ और उसमें बम्बईके भूतपूर्व गवर्नर सर जेम्स फर्ग्युसनकी दबकर मृत्यु हो गई। उन्होंने बम्बई राज्यमें शिक्षाको बहुत ही प्रोत्साहन दिया था। जमैका जानेसे पहले उन्होंने दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिकी अध्यक्षता स्वीकार कर ली थी। उनका शव अत्यन्त आदरके साथ किंग्स्टन में दफनाया गया।

[गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-२-१९०७
 

३३५. घृणा अथवा अरुचि

प्रायः हर व्यक्तिको किसी-न-किसी चीजसे घृणा या अरुचि होती है। किसीको पीव या खून देखकर घृणा होती है, किसीको मिट्टी के तेलकी बदबूसे। इसी तरह अंग्रेजोंको भी कुछ बातोंसे घृणा होती है। उनमें से कुछ तो ठीक हैं और कुछमें अति है। फिर भी इतना तो निश्चित है कि उन्हें घृणा होती हैं। यद्यपि उनमें कुछ बातें तो निरर्थक जान पड़ती हैं, फिर भी वे क्या हैं, सो तो हमें जानना चाहिए। बहुत बार ऐसा होता है कि मनुष्य छोटी-छोटी बातोंको लेकर लड़ बैठता है। छोटी-छोटी बातोंको लेकर गोरे बहुत ही अनर्थ करते हैं। हमें मालूम है कि एक बार एक भारतीयकी अपान वायु निकल गई थी, तो एक गोरेने उसे लात