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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थूक कर गंदगी कर देते हैं। हमारे यहाँ तम्बाकूके व्यसनीके बारेमें कहावत है कि, "खाय उसका कोना, पीये उसका घर और सूंघे उसके कपड़े बड़े गंदे रहते हैं।"

हम इतने नियम शारीरिक स्वच्छताके सम्बन्धमें दे रहे हैं। घर-बार सम्बन्धी नियम बादमें देंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-२-१९०७
 

३३६. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
सर रिचर्ड सॉलोमनका भाषण

जनवरी २१ को प्रिटोरियामें सर रिचर्ड सॉलोमनने अपनी उम्मीदवारीके समर्थन में एक भाषण दिया था। हम पहले लिख चुके हैं कि हम उनके भाषण के उन हिस्सोंका अनुवाद देंगे[१], जिनमें उन्होंने काले लोगोंके सम्बन्धमें विचार व्यक्त किये हैं। वही अनुवाद यहाँ दे रहे हैं।

एशियाई अध्यादेश

अब मैं काफिरोंके सवालोंसे सम्बन्धित एशियाई प्रश्नपर आता हूँ। इस देशमें जितने एशियाई हैं उनमें ज्यादातर ऐसे भारतीय हैं जिन्होंने नियमानुसार प्रवेश किया है और जिन्हें नियमित अधिकार प्राप्त हो गये हैं। इनके अतिरिक्त कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सजाकी परवाह किये बिना नियम भंग करके दाखिल हुए हैं। (तालियाँ)! जो नियमानुसार आये हैं उन्हें न्याय और प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए तथा उन्हें जो अधिकार कानूनन प्राप्त हुए हैं उनसे वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए जो नियमानुसार दाखिल हुए हैं उनका सम्पूर्ण लेखा रखनेकी जरूरत है। इसके अलावा जो यहाँ कानूनन बसे हुए हैं उनकी ही रक्षाके लिए पंजीयन करना जरूरी हो सो बात नहीं; बल्कि भविष्य में जिनपर रोक लगाई जाये वे वापस न आ सकें, इसके लिए भी कानून बनाया जाना चाहिए। इसी उद्देश्यसे विधान परिषद् कानून पास किया गया था। लेकिन भारतीय समाजने उसपर आपत्ति की। इसलिए बड़ी सरकारने उसे मंजूर नहीं किया। यह बात समझी जा सकती है, क्योंकि भारतके सम्बन्ध में इंग्लैंड सरकारपर बड़ी जिम्मेदारी है। मतलब यह कि जबतक उपनिवेशकी लगाम बड़ी सरकारके हाथमें थी तबतक उसने कानून पास नहीं किया—यह ठीक ही था।

उसी कानूनको फिरसे स्वीकार किया जाये

किन्तु नई संसदमें हमें वैसा ही कानून पास करना होगा। मुझे विश्वास है कि स्वराज्य प्राप्त उपनिवेश यदि ऐसा कानून पास करता है तो बड़ी सरकार उसे स्वीकार करेगी।
  1. देखिए 'जोहानिसबर्गकी चिट्ठी', पृष्ठ ३१५ और "टान्सवालके भारतीय", पृष्ठ ३२५-२६।