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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

 

अन्य कानून

किसीने प्रश्न किया है कि अबसे भारतीयोंके आवागमनके सम्बन्धमें क्या किया जाये? इस उपनिवेशमें रहनेवाले अंग्रेज व्यापारी मानते हैं कि उनसे भिन्न ढंगसे रहने-वाले और अनुचित तरीकेसे प्रतिस्पर्धा करनेवाले भारतीयोंके ट्रान्सवालमें जाने व व्यापार करनेकी मनाही होनी चाहिए। उन्हें डर है कि यदि ऐसे लोग आते रहे तो वे स्वयं बरबाद हो जायेंगे। इस विचारसे मेरी सहानुभूति है। इस विचारके कारण इस देशकी संसदको जल्दीसे जल्दी भारतीयोंको रोकनेके लिए कानून पास करना चाहिए। वैसे कानूनका नमूना केप या नेटालमें मौजूद है।

क्या केप-नेटालका कानून काफी नहीं है?

इस सवालपर मैंने बहुत ध्यान दिया है। और मुझे लगता है कि यदि हम केप और नेटालके कानूनोंको ग्रहण करें तो उनसे सामान्य 'कुली' लोग रोके जा सकेंगे, किन्तु जिन्हें आप लोग बाहर रखना चाहते हैं,—यानी व्यापारी—वे नहीं रुकेंगे। यदि आप केप या नेटालका कानून ग्रहण करें तो आपको यह भी निश्चित करना होगा कि जो एशियाई प्रविष्ट हों वे व्यापार न कर सकें।

सर रिचर्डकी तजवीज

मैं इस सम्बन्धमें स्पष्ट कहना चाहता हूँ। मुझे तो यह बात पसन्द आती है। कि हमारे देशमें भारतीय आ ही न सकें। सिर्फ जो देश देखनेको आना चाहें उन्हींको आनेकी छूट दी जानी चाहिए। इस देशमें भारतीयोंको आने दें, फिर उन्हें दबायें और आखिर इस सरकार और बड़ी सरकारमें विवाद हो, इससे तो यहीं अच्छा है कि भारतीयोंको आने ही न दिया जाये। इसलिए मेरा विचार है कि हमें ऑरेंज रिवर उपनिवेशके समान कानून पास करना चाहिए। वह कानून लड़ाईके पहले पास हुआ है। उसका बड़ी सरकारने विरोध नहीं किया। उस कानूनको स्वीकार करते समय जो इस देशमें नियमानुसार आये हुए हैं और जिन्होंने अधिकार प्राप्त कर लिये हैं उन्हें यहाँ रहने दिया जाये और उनके अधिकार कायम रखें जायें।

जोहानिसबर्ग व्यापार-मण्डल

इस मण्डलने एक विज्ञप्ति प्रकाशित की है। उसमें जोहानिसबर्गकी वर्तमान भुखमरीके कारण बताये गये हैं। उन कारणोंमें एक कारण भारतीय व्यापारियोंकी प्रतिस्पर्धा भी बताया गया है। श्री क्विनने कुछ महीने पहले भाषण दिया था।[१] उन्होंने कहा था कि भारतीयोंको दोष देना बेकार है। लेकिन मण्डलका इस समय तो यह पेशा ही बन गया है। कि चाहे जैसे भी हो भारतीयोंके विरुद्ध लोकमत तैयार किया जाये।

डेलागोआ-बे जानेवाले भारतीय

ट्रान्सवालसे डेलागोआ-वे जानेवाले भारतीयोंके साथ सख्तीकी जानेकी खबर मिलनेपर पुर्तगाली वाणिज्यदूतसे छानबीन की गई थी। उससे मालूम हुआ है कि वह सख्ती कोई

  1. देखिए "क्विनका भाषण", पृष्ठ २९३-९४; और "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ २९५-९६। गांधीजीने श्री क्विनके भाषणका जो सारांश दिया है उसमें इस बातका उल्लेख नहीं है।