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३३९. आदमजी मियाँखाँ

[फरवरी ५, १९०७ के पूर्व][१]

श्री आदमजी मियाँखाँ ७ तारीखको स्वदेश लौट रहे हैं। उन्होंने समाजकी जो सेवा की है। सब भारतीय व्यापारियोंके लिए वह सबक लेने योग्य है। इस अंक में हम उनकी तसवीर प्रकाशित कर रहे हैं। श्री आदमजी स्वयं एक कुलीन परिवारके हैं। उनके पूर्वज किमखाब आदिका व्यापार करते थे। वे स्वयं अपने भाई श्री गुलाम हुसैन और पिता श्री मियाखाँके साथ १८८४ में दक्षिण आफ्रिका आये थे। उस समय उनकी उम्र १८ वर्षकी थी। उन्होंने अंग्रेजीका थोड़ा-बहुत अध्ययन किया था। वह उनके लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ।

भारतीय समाजको उनकी सच्ची सार्वजनिक सेवाका अनुभव १८९६-९७ में हुआ। कांग्रेसको बने बहुत थोड़ा समय हुआ था। कांग्रेसके पहले मन्त्रीके स्वदेश लौटने के कारण प्रश्न था कि मन्त्री किसे बनाया जाये। लेकिन श्री मियाखाँको उनके अंग्रेजी ज्ञान और जागरूकताके कारण कार्यवाहक मन्त्री बनाया गया। उस समय अध्यक्ष श्री अब्दुल करीम हाजी आदम झवेरी थे। उनके और श्री आदमजीके कार्यकाल में कांग्रेसकी निधि १०० पौंडसे बढ़कर १,१०० पौंड हो गई। इस समय सदस्योंमें जोश भी और ही था। वे अपनी गाड़ी लेकर चन्दा उगाहनेके लिए दूर-दूर तक चले जाते थे। उस समय जो काम हुआ उसका फल आज सारी कौम चख रही है। उस कामका मुख्य श्रेय श्री आदमजीको देना उचित होगा; क्योंकि जबतक मन्त्री लगनशील न हो तबतक कोई भी संगठन बढ़ नहीं सकता। किन्तु श्री आदमजीने अपनी सच्ची जागरूकताका परिचय दिसम्बर १८९६ और फरवरी १८९७ में दिया था। उस समय 'कूरलैंड' और 'नादरी' के यात्रियोंको डर्बन बन्दरगाहपर उतारनेमें अड़चन पैदा हुई थी।[२] गोरोंने विरोध किया था। उन्होंने ऐसी व्यवस्था की थी कि एक भी यात्री न उतर पाये। उस समय बड़ी शान्ति, तत्परता और धीरजकी जरूरत थी। ये सारे गण श्री आदमजीने दिखाये। अपनी दूकान कामको भूलकर श्री आदमजी रात-दिन उस संकटको दूर करने में लगे रहते। उसी समय स्वर्गीय श्री नाजर आ गये। उन्होंने बहुत ही मूल्यवान सहायता की। फिर भी यदि श्री आदमजी ढीले पड़ जाते तो आखिर जो शुभ परिणाम हुआ वह नहीं हो सकता था।

उपर्युक्त नाजुक समय बीत जानेके बाद आजतक जितना भी सार्वजनिक काम हो सका उतना श्री आदमजीने किया है। उन्हें श्री उमर हाजी आमद झवेरी तथा वर्तमान संयुक्त मन्त्री श्री मुहम्मद कासिम आंगलिया अपने अनुभवका लाभ देते आये हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि श्री आदमजी स्वदेश लौटकर अपनी मनोकामनाएँ पूरी करें और स्वस्थ होकर लोक-सेवा करनेके लिए वापस लौटें। साथ ही हम यह भी चाहते हैं कि श्री आदमजीके कामोंका दूसरे भारतीय भी अनुकरण करें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-२-१९०७
  1. देखिए "पत्र : छगनलाल गांधीको", पृष्ठ ३३७-३८।
  2. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १६६।