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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ईछ्यो आप सवारथ रे,"[१] इस तरह प्रारम्भ होनेवाला प्रीतमदासका पद 'काव्यदोहन' में है। इसे देखकर, यदि ठीक हो तो, दे देना। कबीरके भजन मिल जायें, तो उनमें बहुतेरे निर्विवाद हैं।

कल्याणदास आदिके बारेमें कल सवेरे पत्र आनेकी सम्भावना है।

मोहनदासके आशीर्वाद

[पुनश्च :]
कल मुख्तारनामा और पंजीयनकी बाबत पत्र गये।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४६९६) से।
 

३४२. पत्र : टाउन क्लार्कको

जोहानिसबर्ग
फरवरी ६, १९०७

सेवामें
टाउन क्लार्क
पो॰ ऑ॰ बॉक्स १०४७
जोहानिसबर्ग
महोदय,

ब्रिटिश भारतीय संघकी समितिने एशियाई चायघर अथवा भोजनालयोंको परवाना देने और नियमित करने से सम्बन्धित उपनियमोंका मसविदा देख लिया है। मेरी समिति उक्त उपनियमों के बारेमें परिषदके विचारार्थ नम्रता-पूर्वक निम्नलिखित निवेदन करती है।

जान पड़ता है कि गिरमिटिया चीनी आबादी और उसको खिलाने-पिलानेका काम जिन अनेक व्यक्तियोंने लिया है उनके कारण इन उपनियमोंकी आवश्यकता उत्पन्न हुई है। किन्तु "एशियाई चायघर अथवा भोजनालय" शब्दकी परिभाषाके अन्तर्गत स्पष्टतया ऐसा कोई भी स्थान आ जाता है जहाँ एशियाइयोंके खाने-पीनेका प्रबन्ध है, और, इसलिए, इसमें वे छोटे-छोटे ब्रिटिश भारतीय उपाहारगृह भी आ जायेंगे जो जोहानिसबर्ग में चल रहे वे बहुत थोड़े हैं और उनमें आनेवाले भी बहुत थोड़े हैं, क्योंकि ब्रिटिश भारतीयोंकी सारी आबादी स्थायी है और उसके खाने-पीने के लिए किसी प्रकारके भोजनालयोंकी आवश्यकता नहीं है। इसलिए मेरी समितिका सुझाव है कि उक्त परिभाषामें ब्रिटिश भारतीयोंके ऐसे स्थान शामिल न किये जायें। साथ ही, मेरी समितिका इरादा जोहानिसबर्गके उन थोड़े-से छोटे-छोटे उपाहारगृहोंको स्वच्छता आदि सम्बन्धी निरीक्षणसे बचाना नहीं है; परन्तु, समितिकी नम्र रायमें, सामान्य लोकस्वास्थ्य उपनियम उक्त उद्देश्यकी दृष्टिसे पर्याप्त हैं।

मेरी समिति नम्र मतानुसार चायघर अथवा भोजनालयके परवानोंकी अर्जी देनेकी निर्धारित पद्धति महँगी और झंझट भरी है। उसका औचित्य यदि भोजनालय बड़े और बहुत

  1. हे प्राणी, तूने परमार्थकी चाह नहीं की, स्वार्थ ही चाहा है।