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पत्र : छगनलाल गांधीको

लाभकारी होते तभी हो सकता था। मेरी समितिकी नम्र रायमें सालाना परवानाका-शुल्क भी लगभग उनके बूतेके बाहर तथा यूरोपीय उपाहारगृहों और काफिरोंके भोजनालयोंसे लिये जानेवाले शुल्ककी अपेक्षा अधिक है। यूरोपीय उपाहारगृहोंका परवानाशुल्क केवल ७ पौंड १० शिलिंग और वतनी भोजनालयोंका ५ पौंड है। इसके सिवा 'एशियाई भोजनालय' की परिभाषामें "चायघर" शामिल है। इसलिए, जब कि एक सामान्य चायघरके लिए ३ पौंड परवाना शुल्क लगता है, एशियाई चायघरको उसका १० पौंड देना पड़ेगा; इसके सिवा मेरी समितिको नम्र रायमें परवानेको नया करानेका २ पौंड शुल्क भी बहुत अधिक है।

अतः मेरी समिति आशा करती है कि नगर परिषद प्रस्तावित उपनियमोंपर उठाई गई इन आपत्तियोंपर अनुकूल विचार करने की कृपा करेगी।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-२-१९०७
 

३४३. पत्र : छगनलाल गांधीको

[जोहानिसबर्ग]
फरवरी ७, १९०७

चि॰ छगनलाल,

तुम्हारा ४ तारीखका पत्र मिला।

मुस्लिम जायदाद (मोहम्मडन इस्टेट) के विज्ञापनका पैसा मिलनेवाला है। बिल भेजना।

तुम्हारे भेजे हुए बिल मिल गये हैं। अब देखूँगा कि क्या वसूल हो सकता है।

पहेली के बारेमें मैं समझ गया था। मुझे लगता है कि जबतक हम हमेशा पहेली न दे सकें और स्वयं पुरस्कार न दें, तबतक पहेली शामिल करना ठीक नहीं होगा। जो मनुष्य खुद पैसा खर्च करना चाहता है, उसका क्या हेतु है? वह कहाँतक खर्च करेगा? फिर उसमें बहुत लोगोंके भाग लेते रहने की सम्भावना नहीं है। फिर भी जिसका पत्र है उससे पूछना कि वह क्या हमेशा के लिए पुरस्कार देता रहना चाहता है? यदि ऐसा हो, तो बड़ी विचित्र बात है। कभी-कभी देनेकी बात हो, तो यह हमारे करने योग्य नहीं है। फिर भी यदि तुम्हें कुछ और लिखना हो तो लिखना।

संघवीका मामला समझमें आ गया।

बी॰ पी॰ इब्राहीमने विज्ञापन निकालने की सूचना नहीं दी है। वे आयेंगे तब पूछ देखूँगा। तुमने ग्राहकोंके नाम भेजे हैं, उनका प्रबन्ध करता हूँ।

हमीदिया [अंजुमन] के लिए अभी प्रबन्ध कर रहा हूँ।

मणिलालका गणित कच्चा है, इसे मैं जानता हूँ। उसपर पूरा ध्यान देना।