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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नया आदमी कहाँतक अंग्रेजी पढ़ा है? वह कौन है? गिरमिटियेका लड़का है? हीरजी वालजीकी रकम मैं मुजरा दे सकूँगा।

भारतीय-विरोधी कानून-निधिके बिलके बारेमें हेमचन्द कहता है कि वह यहाँ नकद ही तो दिया गया है।

शनिवार की रातको मुझे डाक मिलना सम्भव नहीं है। इसलिए प्रूफकी झंझट में पड़नेकी जरूरत नहीं। तुम गुरुवारके पत्रमें मुझे लिखो कि किस-किस विषयपर लिखा जा चुका है, तो काफी होगा। उससे मैं समझ सकूँगा कि मुझे क्या नहीं लिखना है।

विलायत जाने के बारेमें, मेरी रायमें, तुरन्त जा सको तो अच्छा हो। किन्तु तुम्हारा जाना मुख्य रूपसे वहाँके कामपर निर्भर है।

(१) तुम कब मुक्त हो सकते हो?
(२) तुम्हारी जगह काम कौन संभालेगा?
(३) क्या हरिलाल गुजराती स्तम्भ सँभाल सकेगा?

मैं मानता हूँ कि तुम जिस समय छापाखानेका काम छोड़ सको, वही तुम्हारे जानेका समय है। यदि तुम्हारा मन कहे कि हाँ, छापाखाना छोड़ा जा सकता है, तो फिर तुम्हें सबके साथ बात करनी चाहिए। उसके बाद मुझे लिखना।

कल्याणदास जाता है, यह बात विघ्न-रूप जान पड़ती है। मुझे लगता है कि जहाँतक हो तुम्हें गाँव जाना छोड़ना पड़ेगा। यदि मगनलालकी हिम्मत गाँवका काम उठानेकी हो, तो उसे गाँवमें जाना है। हरिलाल गुजराती स्तम्भ सँभाले और बहीखातेकी देख-रेख मगनलाल रखे, अर्थात् असल बही उसीके हाथकी होनी चाहिए। यदि मगनलालसे दोनों काम साथ न हो सकें, और यदि वेस्टसे भी वह काम न उठाया जा सके, तो मुझे लगता है कि तुम्हारा जाना फिलहाल स्थगित रहना चाहिए। यदि ऐसा हो, तो मेरे आनेके बाद ही तुम्हारा जाना सम्भव होगा, अर्थात् आगामी वर्षके प्रारम्भमें। सम्भावना यह है कि मैं वहाँ इस वर्षके अन्तमें आ सकूँगा। किन्तु यदि ऐसा न हुआ तो फिर मैं केवल आगामी वर्षके मार्च महीने में ही वहाँ आ सकूँगा। तबतक तुम्हारा जाना रुक जायेगा। मैं कल्याणदासके भाईको बुलवानेका विचार करता हूँ। शायद गोको[१] भी आ सकता है। किन्तु यह सब अनिश्चित है श। कल्याणदास न हो और वहाँ जो लोग हैं वे ही रहें, तो भी तुम निकल सकते हो या नहीं, इसपर विचार करना है। इन सब बातोंका खयाल करके मुझे लिखना। मुझे लगता है कि तुम वेस्टके साथ बातें करके लिखो, तो भी अच्छा हो। उनका क्या विचार है? यदि अभी तुम्हें तुरन्त जाना हो, तो तुम देश नहीं जा सकोगे। देश जानेका कार्यक्रम लौटते हुए रख सकते हो। तुम्हें क्या करना है, इसका निश्चय करनेका भार मुख्य रूपसे तुमपर ही रखना चाहता हूँ।

यद्यपि हरिलालने रहना मंजूर कर लिया है, तो भी उसके पत्रमें अस्वस्थ चित्तकी झलक है। इसीलिए मैंने लिखा है कि उसके साथ ऐसा बरताव करना कि उसका मन स्थिर हो।

पोस्टरका उपयोग यहाँ तो हो रहा है। वहाँ भी यदि गाँवमें जानेवाले व्यक्तिकी हम ठीक व्यवस्था कर सकें, तो पोस्टर उपयोगी हो सकते हैं। अब उन्हें बन्द करनेका विचार छोड़

  1. गोकुलदास।