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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


समितिके सामने आज तत्काल चार काम हैं : (१) नेटालका नगरपालिका विधेयक; (२) नेटालका परवाना कानून; (३) ट्रान्सवालके कष्ट; और (४) आगामी उपनिवेश सम्मेलन।

उपनिवेश सम्मेलन १५ अप्रैल को होगा। उसके लिए समितिको पूरा जोर लगाना पड़ेगा। और शेष तीन बातोंके बारेमें हमें यहाँसे तथ्य आदि भेजने आवश्यक हैं। हम समझते हैं कि नेटालके दोनों कानूनोंके बारेमें सभा करके लॉर्ड एलगिनको तार भेजना चाहिए तथा समितिको भी सूचित करना चाहिए। यह बात बहुत ही ध्यानमें रखने योग्य है कि यह अवसर चूक जानेपर हाथ नहीं आयेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-२-१९०७
 

३४५. टोंगाटका परवाना

टोंगाटका जो परवाना रद हो गया था, उसकी अपीलकी सुनवाई ३१ जनवरीको हुई। हमारे संवाददाताने उसका विशेष विवरण अंग्रेजी विभागमें दिया है। उससे मालूम होता है। कि परवाना निकायने कुल मिलाकर अन्याय नहीं किया है। जिनके मकान या दूकानके बारेमें डॉक्टरकी राय अच्छी थी उन्हें परवाना दिया गया है। जिनके बहीखातोंकी हालत भी सन्तोष जनक थी उन्हें भी परवाना देने का हुक्म हुआ है। इस अपीलके परिणामसे सिद्ध होता है कि हमने जो चेतावनी पहले ही दी थी वह अक्षर-अक्षर सही उतरी है।

अपनी दुकानें हम बिलकुल साफ रखेंगे, हमारा मकान ठीक तरहसे साफ होगा और बहीखातों में कहने जैसी कोई बात नहीं होगी तो परवाना रुक नहीं सकता। दोष हमारा नहीं होना चाहिए। हमारे मकान वगैरह अच्छे हों, इतना ही पर्याप्त नहीं है। सफाई में उनका सानी नहीं मिलना चाहिए। मैं समझता हूँ कि डॉक्टर हिलने कृपा करके अच्छा बयान दिया है। लेकिन हमें किसीकी कृपापर निर्भर नहीं रहना चाहिए। इस वर्ष बच गये, इसलिए कोई यह न समझ ले कि अगले वर्ष भी ऐसा ही होगा। हमारे मकान, दुकान या बहीखाते देखने के लिए जब भी कोई आये, तब वे तैयार और साफ-सुथरे ही होने चाहिए। उस स्थितिमें परवाना प्राप्त करनेमें बहुत ही कम तकलीफकी सम्भावना है।

हम आशा करते हैं कि टोंगाटके व्यापारियोंके किस्सेसे जो सबक मिला है उसे सारे भारतीय व्यापारी याद रखेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-२-१९०७