पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४८
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

सत्ता दी गई है उसका न्यायपूर्ण तरीकेसे उपयोग किया जाये, नहीं तो दी हुई सत्ता वापस ले लेनी होगी। हमारी कांग्रेस और भारतीय कौम दृढ़तापूर्वक लड़कर व्यापारियोंके साथ किये गये अन्यायका सरकार और सारी दुनियाको भान करायेगी, तो हमें आशा है कि कुछ-न-कुछ सुनवाई जरूर होगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-२-१९०७
 

३५१. केपका परवाना-कानून

केप कालोनीके ग्रेहम्ज़ टाउनके परवानेके सम्बन्धमें हमें जो पत्र[१] प्राप्त हुआ है उसे हम इस अंक में प्रकाशित कर रहे हैं। उस पत्र से यह शंका पैदा होती है कि बहुत-सी जगहों में गरीब फेरीवाले बिना परवानेके बैठे रहते होंगे। यह परवाना सैकड़ों भारतीयोंके गुजारेका साधन है। केपका कानून हम पढ़ चुके हैं। हमारा खयाल है, ऐसे परवाने देनेके लिए परिषद बँधी हुई है। इसलिए इसका वैधानिक उपाय किया जा सकता है।

नेटालमें वैसी ही तकलीफ है। कानून बहुत ही सख्त है, फिर भी कांग्रेसके कर्ताधर्ता इतनी मेहनत कर रहे हैं कि उससे बहुत-सा नुकसान होता-होता रुक गया है और आगे भी रुकेगा। कांग्रेसके मन्त्री जगह-जगह घूमते हैं, लोगोंको सहारा देते हैं और यथावश्यक उपाय भी करते हैं।

केपकी समिति (लीग) को और संघको इससे उदाहरण लेना है। इन दोनों सभाओंका कर्त्तव्य है कि प्रत्येक गाँवमें कैसी परिस्थिति है, इसकी जाँच करें। हम मानते हैं कि यदि वे यथेष्ट प्रयत्न करें तो न्याय प्राप्त कर सकेंगी। फिर यह भी याद रखना है कि केपमें लड़ने की जैसी सुविधा है वैसी नेटालमें नहीं है। इसलिए यदि केपमें पूरा मुकाबला न हो तो भारतीय नेताओंको शर्मिन्दा होना पड़ेगा। केपमें जिन लोगोंको परवाने नहीं मिले हैं उनके नाम, पते आदि प्रकाशित करने में हमें प्रसन्नता होगी, इसलिए सभी पाठकोंको सूचना है कि वे वैसे नाम-पते आदि हमारे पास भेजें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-२-१९०७
  1. यह पत्र एक फेरीवालेने लिखा था, जो अपने मामले में इंडियन ओपिनियनके सम्पादकको सहायता चाहता था। उसे कई वर्षोंसे फेरीका परवाना प्राप्त था। अब अधिकारियोंने उसे नया करनेसे इनकार कर दिया था, जिससे उसके भूखों मरनेकी नौबत आ गई थी।