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३६०. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी
अनुमतिपत्रके पाँच मुकदमे

श्री कुवाड़ियाके लड़केका मुकदमा फोक्सरस्टके मजिस्ट्रेटके सामने शुक्रवार तारीख १५ को हुआ था।[१] श्री कुवाड़ियाकी ओरसे श्री गांधी उपस्थित थे। सिपाही मैक्ग्रेगरने बयान देते हुए कहा कि १४ वर्षसे कम उम्रके भारतीय लड़कोंको बिना अनुमतिपत्रके जाने देते हैं। किन्तु १४ वर्षके या उससे ज्यादा उम्र के लड़के हों तो उनसे अनुमतिपत्र माँगा जाता है और न दिखानेपर पकड़ा जाता है।

श्री जेम्स कोडीने बयान देते हुए कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि कैप्टन फॉउलका निर्णय वर्तमान पंजीयकको हमेशा स्वीकार्य ही है। श्री कुवाड़ियाके लड़केके सम्बन्ध में कैप्टन फाउलका जो पत्र था, उसे देखकर उन्होंने कहा कि इस पत्रको अनुमतिपत्र नहीं माना जा सकता और यह श्री चैमनेके लिए बन्धनकारक नहीं है। अपने सख्त बयानके बाद उन्होंने इतना स्वीकार किया कि यदि कैप्टन फाउलने वह काम अनुमतिपत्र अधिकारीके रूपमें किया हो तो श्री चैमनेको उसे स्वीकार करना चाहिए। श्री आमद सालेजी कुवाड़ियाने[२] अपने भतीजे की उम्र और उसके १९०३ में जोहानिसबर्ग में पढ़नेके सम्बन्धमें बयान दिया। श्री कुवाड़ियाने स्वयं उपर्युक्त बयानका समर्थन किया। डॉ॰ हिकने लड़केकी उम्र के सम्बन्ध में बयान दिया और श्री गांधीने अपने पासके कैप्टन फाउलके कागज पेश किये। लड़केने भी यह बताने के लिए बयान दिया कि उसे थोड़ी-बहुत अंग्रेजी आती है। मुकदमा समाप्त हुआ और मजिस्ट्रेटने दोनों पक्षोंकी दलीलें सुनकर लड़केको छोड़ दिया।

उसके बाद अन्य चार भारतीयोंपर दूसरे लोगोंके अनुमतिपत्रके आधारपर आनेके सम्बन्धमें मुकदमे चलाये गये। उनके नाम कीकाप्रसाद, नगा भाणा, अबू वल्लभ सोनी और मिर्जाखाँ थे। उनमें से तीनने स्वीकार किया कि उनमें से हरएकने बम्बई में ९० रुपये देकर दूसरोंके अनुमतिपत्र लिये थे। चौथे व्यक्तिने स्वीकार नहीं किया। चारोंको ४०-४० पौंडका जुर्माना और ४-४ महीने की कँदकी सजा दी गई।

श्री कुवाड़िया के मुकदमेसे मालूम होता है कि सच्चे मामलेवालोंकी भी कभी-कभी बहुत खर्च करने के बाद सुनवाई होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि झूठे मामले भी होते हैं। जो चारों मामले एक ही दिन हुए उनसे हम देख सकते हैं कि अनुमतिपत्र बेचनेवाले दगा करके दूसरोंको ठगते हैं और उन्हें गड्ढे में पटकते हैं। वैसे अनुमतिपत्र लेनेवाले अपनी कमाई गँवा कर बेकार बरबाद होते हैं और ट्रान्सवालमें नहीं रह सकते। दूसरी ओर इस तरह के कामसे सारे समाजको नुकसान होता है और वे सख्त कानून बनाये जानेका कारण बन जाते हैं।

  1. देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ३५१-५३।
  2. श्री इब्राहीम सालेजी कुवाड़िया के भाई।