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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

एशियाई नीलीपुस्तिका

विलायत में एशियाई अध्यादेशके सम्बन्धमें लॉर्ड एलगिनने सारा इतिहास प्रकाशित किया है। उसके सम्बन्धमें यहाँके तीनों अखबारोंमें बड़े-बड़े तार प्रकाशित हुए हैं। उनमें खासकर लॉर्ड सेल्बोर्नका लेख भारतीय समाजके लिए सोचने योग्य है। लॉर्ड एलगिनके निर्णयपर लॉर्ड सेल्बोर्नने कड़ी टीका की है। उनका कहना है कि लॉर्ड एलगिनने भारतीय बातको स्वीकार करके लॉर्ड सेल्बोर्नका दिया हुआ वचन भंग करवाया है। यह वचन वह है जो उन्होंने पाँचेक्स्ट्रूममें दिया था—यानी उत्तरदायी शासन आने तक किसी भी नये भारतीयको प्रवेश नहीं करने दिया जायेगा। उनकी यह शिकायत ठीक नहीं है, क्योंकि नये भारतीयोंके आनेकी बात तो दर-किनार, पुराने लोगोंको भी आने में दिक्कत हो रही है; महीनों बीत जाते हैं। इसके अतिरिक्त उनका कथन यह है कि बहुत से भारतीय बिना अनुमतिपत्रके प्रवेश किया करते हैं। यह बात भी अनुचित मानी जायेगी। क्योंकि यदि ऐसा होता हो तो उसे सिद्ध करनेके लिए भारतीय समाज लॉर्ड सेल्बोर्नसे जाँच आयोग बैठाने के लिए कई बार कह चुका है। लेकिन लार्ड सेल्बोर्नका कड़वा लेख बताता है कि भारतीय समाजको सिर्फ गोरोंसे ही टक्कर नहीं लेनी है, उसे गवर्नरसे भी भिड़ना है, जिन्हें निष्पक्ष रहना चाहिए, किन्तु जो भारतीयोंके विरुद्ध हो गये हैं।

धारासभाके नये सदस्य

लॉर्ड सेल्बोर्नने धारासभाके १५ सदस्योंका चुनाव किया है। उनमें ११ प्रगतिशील तथा ४ हेटफ़ोक हैं। उनके नाम : सर्वश्री एच॰ कॉफ़र्ड, एल॰ कटिस, कर्नल डब्ल्यू॰ डायरिंपल, जी॰ जे॰ डब्ल्यू॰ ड्यू टायट, आर॰ फीलपम, डब्ल्यू॰ ग्रांट, मैक्स लेंगरमैन, डब्ल्यू॰ ए॰ मार्टिन, टी॰ ए॰ आर॰ पर्चेस, ए॰ एस॰ रॉयट, ए॰ जी॰ रॉबर्ट्सन, पी॰ डी॰ रॉक्स, जे॰ रॉय, जे॰ फानडरबर्ग, ए॰ [डी॰ डब्ल्यू॰] जुलमेरन्स।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-२-१९०७