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३६४. गोगाका परवाना

इस परवानेकी अपीलसे कई विचार उठते हैं। श्री गोगा जीत गये, इसलिए उन्हें बधाई देनी चाहिए। भारतीय समाजको भी हर्ष होना चाहिए। 'नेटाल मर्क्युरी' ने इस सम्बन्धमें कड़ी टीका की है। वह हमारे लिए लाभप्रद है। इसी प्रकार 'टाइम्स ऑफ नेटाल' ने भी लिखा है। यहाँको सरकार भी हमारी सहायता करती है। किन्तु इससे क्या? श्री गोगाको कितना खर्च उठाना पड़ा, जिसके बाद उनका साधारण अधिकार बहाल रहा? उन्हें तीन वकील रखने पड़े, और वे भी नेटालमें ऊँचे माने जानेवाले।[१] अत्यधिक चिन्ताके बाद उन्हें परवाना मिला। नगर परिषदने जो परवाना दिया वह न्यायबुद्धिसे नहीं, किन्तु केवल डरके कारण। क्योंकि श्री गोगाके परवानेका मुकदमा पूरा हुआ कि तुरन्त एक गरीब भारतीय बेनीपर मुकदमा चला। उसके परवानेके बारेमें भी बहीखाते सम्बन्धी आपत्ति थी, फिर भी उसको परवाना देने से इनकार किया गया। क्योंकि, बेनी न कोई तीन वकील रख सकता था, न आगे बढ़ सकता था। इसलिए उसे परवाना नहीं मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि धनवान अपने परवाने बचा पायेगा।[२] परन्तु, यदि गरीब मर जायें तो धनिक कितने समय टिक पायेंगे? धनवान भारतीय गरीब भारतीय व्यापारियोंपर निर्भर हैं। इस समय समूचे उपनिवेशमें इस विषयकी चर्चा हो रही है। व्यापार संघ हमारे पक्षमें काम करना चाहता है। इसलिए ऐसा सम्भव है कि हमारी ओरसे यदि पूरी तरह लड़ाई लड़ी गई तो हम कानून में परिवर्तन करवा सकेंगे।

इस विचारसे अंग्रेजी विभागमें[३] हमने कुछ सुझाव तटस्थ रूपसे दिये हैं। उस तरीके से सारे उपनिवेशमें हमें हो-हल्ला कर देनेकी आवश्यकता है। कांग्रेस बड़ा परिश्रम कर रही है। उसे और भी जोर लगाकर चेम्बरोंसे मिलना चाहिए, और दूसरे गोरों तथा संसदके मुख्य सदस्योंसे मिलकर इस समस्याको हल करना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-३-१९०७
  1. श्री गोगाके प्रमुख सलाहकार प्रसिद्ध वकील और विधायक श्री के॰ सी॰ वाइली, थे। विक्रेता-परवाना अधिनियमका मसविदा तैयार करनेमें उनका भी हाथ था। नेटालके जुलू विद्रोहको दबानेमें उन्होंने विशेष रूपसे भाग लिया था। इस मुकदमे में बहस करते हुए उन्होंने कहा कि "एक भारतीयको भी न्याय और समान व्यवहार पानेका अधिकार है।"
  2. सुनवाई के समय ज्ञात हुआ कि मुकदमेके खर्च के अतिरिक्त श्री रसेल नामक एक भूतपूर्व महापौरने श्री गोगाको परवाना दिलानेका भरोसा देकर उनसे ५० पौंड ऐंठ लिये थे।
  3. देखिए "महँगा न्याय", इंडियन ओपिनियन, २-३-१९०७।