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३६५. केपका प्रवासी कानून

केपमें नया प्रवासी कानून बन चुका है। हमारी रायमें वह नेटालके कानूनकी अपेक्षा बहुत बुरा है। फिलहाल हम उसका सबसे बुरा हिस्सा यहाँ दे रहे हैं। अंग्रेजी न जाननेवाला भारतीय केपका निवासी हो तो भी यदि वह केप छोड़ने की अनुमति लेकर बाहर न जाये, तो वह लौटकर नहीं आ सकेगा। यानी अंग्रेजी न जाननेवाले भारतीयको प्रत्येक बार पास निकलवाना होगा। उसका शुल्क १ पौंड देना होगा। यह पास हमेशा के लिए नहीं, बल्कि अमुक अवधिके ही लिए मिलेगा। यानी स्थायी परवाना नहीं मिल सकता। फिर, जिस राजपत्रमें यह विधेयक प्रकाशित हुआ है उसमें बताया गया है कि जिस व्यक्तिको उपर्युक्त परवाना चाहिए उसे अपना फोटो और हुलिया देना होगा। परवाना तो लेना ही होगा। इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता, क्योंकि परवाना लेना कानूनका अंग है और उस कानूनको लॉर्ड एलगिनकी स्वीकृति मिल चुकी है। फोटोवाली बात गवर्नरके हाथ है। वह एक स्थानीय नियम है। उसमें हर समय परिवर्तन हो सकता है। हमारी राय है कि फोटोके सम्बन्ध में केपके नेताओंको तुरन्त लड़ाई लड़नी चाहिए। उन्होंने यही भूल की कि विधेयक स्वीकृत होने दिया, परन्तु अब यदि फोटोकी बात रह गई तो हम उसे भारी अपराध समझेंगे। केपमें यदि परिपाटी स्थापित हो गई तो उसके छींटे सब जगह उड़ेंगे और उसके कारण धर्मं-भावनाको ठेस पहुँचेगी। आशा है, केपके नेता इस सम्बन्धमें ढील नहीं करेंगे। उपर्युक्त कानूनके मुख्य भागका अनुवाद हमने अन्यत्र दिया है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-३-१९०७
 

३६६. 'मर्क्युरी' और भारतीयव्यापारी

'नेटाल मर्क्युरी' ने अपने २१ फरवरीके अंकमें भारतीय व्यापारियोंके बारेमें जो टीका[१] की है वह जानने और समझने योग्य है। उसने भारतीय व्यापारियोंका पक्ष लिया है और लेडीस्मिथ निकायको फटकारा है। किन्तु यह भी कहा है कि हमें व्यापार-रूपी नौका हर तरहकी चट्टानोंसे बचाकर चलानी है। उसमें कहा गया है कि मैं रित्सबर्ग के व्यापारियोंको परवाना मिल गया है, इसे वे सौभाग्य समझें। उन्होंने सूचना प्राप्त हो जानेके बावजूद बहीखाते ठीक नहीं रखे थे। दुबारा सूचना मिलनेपर रखे। दूसरी बार सूचना देनेके लिए परिषदपर

  1. नेटाल मर्क्युरीने सुझाव दिया था कि यदि अधिकांश यूरोपीय भारतीय व्यापारियोंको पसन्द नहीं करते तो उन्हें भारतीयोंका बहिष्कार करना चाहिए। उसने लिखा : "....भारतीय अपनी अचल सम्पत्ति तभी बढ़ा सकते हैं जब यूरोपीय भू-स्वामी और मकान मालिक अपनी जमीन-जायदाद उनके हाथ बेचने के इच्छुक हों। एशियाई व्यापारके इस वर्तमान विस्तारका कारण यह है कि यूरोपीयोंने उन्हें व्यापार करनेके परवाने दिये हैं और उन्हें एशियाइयोंसे सम्बन्ध रखना अपने लिए लाभदायक जान पड़ता है।"