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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

समाज अनुभव करता है दसों अँगुलियोंकी छाप लेना अनावश्यक अपमान। किन्तु शिनाख्तको पक्का करने के लिए अँगूठेकी छापपर राजी।

यह भी कि ब्रिटिश भारतीय संघकी शाखा समितिको जोरदार शब्दों में गश्ती चिट्ठी[१] लिखी गई है कि वह दसों अँगुलियोंकी छाप न देने दे किन्तु इसके अतिरिक्त शिनाख्त अनुमतिपत्रोंकी जाँच और प्रमाणपत्रोंके पंजीयनमें लॉर्ड मिलनरके साथ हुए समझौते के मुताबिक अधिकारियोंको यथाशक्ति पूरी मदद करे।

बिआस

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७
 

३७४. पत्र : छगनलाल गांधीको

[मार्च ९, १९०७ के पूर्व][२]

[चि॰ छगनलाल,]

तुम्हारे दो पत्र मिले। मैं तुमसे पूर्णतया सहमत हूँ। मुझे खुशी है कि इस बार तुमने तेरह पृष्ठ दिये। श्री वेस्टको राजी करनेके लिए मैं उन्हें लिख रहा हूँ। गुजराती शब्दों में अक्षरोंको पृथक् करने के बारेमें तुम्हारी आपत्तिका मैंने पहले ही अनुमान कर लिया था। मैंने यह त्रुटि फोक्सरस्टमें देखी। मैं कल वहाँ था और मैंने फौरन आनन्दलालको लिख दिया था[३]। फोक्सरस्टसे मैंने कुछ गुजराती और काफी अंग्रेजी सामग्री भेजी थी। आशा है, तुम्हें दोनों मिल गई होंगी।

मैं डच और अंग्रेजीमें १,००० पर्चें छापने का आदेश साथ भेज रहा हूँ। कागज किसी आकारका हो सकता है परन्तु अष्टकसे कम न हो। अंग्रेजी और डच वैसी ही होनी चाहिए जैसी कि साथके कागजोंपर लिखी है। इसकी १,००० प्रतियाँ तुम्हें श्री ए॰ ई॰ एम॰ कचालिया, बॉक्स ९७, फोक्सरस्टको भेजनी चाहिए। उनका नाम फोक्सरस्टके ग्राहकोंमें भी दर्ज कर लो। प्रिटोरियाके लिए भी तुम्हें यह नाम पहले मिल चुका होगा। १,००० पर्चोंके लिए मैंने १ पौंड लेना स्वीकार कर लिया है। रेल-व्यय तो अलग होगा ही। जब यह काम तैयार हो जाये तब तुम उन्हें १ पौंड और शुल्कके लिए बिल भेज सकते हो। उन्होंने तुम्हें एक सप्ताह में या उसके आस-पास ही विज्ञापन भी भेजने का वादा किया है। यदि न भेजें तो तुम मुझे याद दिलाना।

मुझे लगता है कि हमीदियाके कुछ नियमोंमें तुम्हें परिवर्तन करने होंगे। श्री फैन्सीने ठीक ही मेरा ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचा है कि गुजरातीकी अपेक्षा अंग्रेजी नियमोंकी संख्या अधिक है। इसलिए तुम उन परिवर्तनोंको देख लेना जो मैंने किये हैं। मैंने ४९ से

  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. पत्रके अन्तमें कुवाडियाके विज्ञापनके उल्लेखसे स्पष्ट है कि यह पत्र मार्च ९, १९०७ के पूर्व लिखा गया था क्योंकि वह विज्ञापन इंडियन ओपिनियन में २ मार्च तक ही दिया गया।
  3. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।